Ghazal - Bahut Khubsurat Ho Tum - shayar Tahir Faraza

बहुत खूबसूरत हो तुम , बहुत खूबसूरत हो तुम
कभी मैं जो कह दूँ, मोहब्बत है तुमसे,
तो मुझको खुदरा ग़लत मत समझना
की मेरी ज़रूरत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
........
है फूलों की डाली, ये बाहें तुम्हारी !
है ख़ामोश जादू निगाहें तुम्हारी !
जो कांटे हो सब अपने, दामन में रख लूँ
सजाऊँ मैं कलियों से राहें तुम्हारी
नज़र से ज़माने की ख़ुद से बचाना
 किसी और से देखो दिल न लगाना
की मेरी अमानत हो
बहुत खूबसूरत हो तुम

है चेहरा तुम्हारा, की दिन है सुनहरा,
और उसपर ये काली घटाओं का पहरा,
गुलाबों से नाज़ुक, महकता बदन है
ये लब है तुम्हारे, की खिलता चमन है
बिखेरो जो ज़ुल्फ़ें तो शरमाये बादल
ये ज़ाहिद भी देखे तो हो जाए पागल
वो पाकीज़ा मूरत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम

जो बन के कली मुस्कराती है अक्सर
शबे हिज्र में जो रुलाती है अक्सर
जो लम्हो ही लम्हों में दुनिया बदल दे
जो शायर को दे जाए पहलू ग़ज़ल के
छुपाना जो चाहे छुपाई न जाए
भुलाना जो चाहे भुलाई न जाए
वो पहली मोहब्बत हो तुम
बहुत खूबसूरत हो तुम
ताहिर फ़रा

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