ग़ज़ल - माना कि बहुत दुख है
✍💐गज़ल💐✍
माना कि दुःख बहुत है इस जमाने में।
फ़िर भी क्या हर्ज़ है मुस्कराने में।1।
कुछ दर्द मिलते है इस जीवन में ऐसे।
जिन्दगी कम पड़ जाती है भुलाने में।2।
ज़माना बड़ा बेदर्द है यारों।
कोई कसर ना छोड़े ये रुलाने में।3।
दिन छोटे और रातें लंबी होने लगी है।
मौसम भी लगा है यादों का वक़्त बढ़ाने में।4।
खुद के लिए वक़्त नहीं है पलभर का।
जिंदगी बीत रही है दो रोटियां कमाने में।5l
रिश्तों को रखना फूलों सा संभालकर।
इक पल भी नहीं लगता इन्हें मुरझाने में ।6।
रिश्ते नाते भी मौसम सा रंग बदले है।
बड़ा वक़्त लगा "ऐश" को समझाने में।7।
💐अश्वनी कुमार चावला💐
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