फूल मुहब्बत का खिल जाता तो अच्छा था ! रूप तुम्हारा सामने आ जाता तो अच्छा था !! बहुत बिताया मैने तन्हा रह कर यह जीवन ! साथ तुम्हारा गर जो मिल जाता तो अच्छा था !! -राकेश नमित
झील सी ऑंखें शोख़ अदाएं, फूल सा चेहरा घर में है ! मैं बाहर क्यूँ तीर चलाऊं मेरा निशाना घर में है !! -- ग़ाफिल लोंगों मत देखो, नापाक दुपट्टे की जानिब, जिसपे नमाज़े पढ़ सकते हो, ऐसा दुपट्टा घर में है ! -- जब तक जेब में माल रहेगा, तब तक देगी दुनिया साथ, जो दुःख सुख में साथ निभाये, वो महबूबा घर में है ! -- दिल में उसकी याद बसी है, और तस्वीर निगाहों में, एक महबूबा घर से बाहर, एक महबूबा घर में है ! -- शायर – जौहर कानपुरी
मैं और मेरी तनहाई , अक्सर ये बातें करते हैं तुम होती तो कैसा होता तुम ये कहती , तुम वो कहती तुम इस बात पे हैरां होती तुम उस बात पे कितना हँसती तुम होती तो ऐसा होता , तुम होती तो वैसा होता मैं और मेरी तनहाई , अक्सर ये बातें करते हैं F ये कहाँ आ गए हम , यूँ ही साथ साथ चलते F तेरी बाहों में ऐ जानम , मेरे जिस्म-ओ-जां पिघलते – 2 ---- ये रात है या , तुम्हारी ज़ुल्फें खुली हुई है है चांदनी या तुम्हारी नज़रों से मेरी रातें धुली हुई है ये चाँद है या तुम्हारा कंगन सितारें है या तुम्हारा आँचल हवा का झौंका है , या तुम्हारे बदन की खुशबू ये पत्तियों की है सरसराहट के तुमने चुपके से कुछ कहा है ये सोचता हूँ , मैं कब से गुमसुम के जब के , मुझको को भी ये खबर है के तुम नहीं हो , कही नहीं हो मगर ये दिल है के कह रहा है तुम यहीं हो , यहीं कहीं हो ---- F तू बदन है , मैं हूँ छाया , तू ना हो तो मैं कहाँ हूँ F मुझे प्यार करनेवाले , तू जहाँ है मैं वहाँ हूँ F हमें मिलना ही था हमदम , किसी राह भी निकलते – 2 F ये कहाँ आ गए हम , यूँ ही साथ साथ चलते
NAMAN KARUN MAIN GURU CHARNAN KI नमन करूँ मैं गुरु चरनन की , किरपा निधि भव ताप हरन की ! -- दीना नाथ सदा किरपाला , स्वामी शम्भू महान विशाला , करुना सिन्धु दयालु किरपाला , मन मन्दिर का रहने वाला , / मेरी पीर हरैं सब तन की , छाया मिल गयी राम चरन की ! नमन करूँ मैं गुरु चरनन की , किरपा निधि भव ताप हरन की ! - - - - सेस गनेस महेस कहा ss ये , मनई रूप बनाय के आ ss ये ! जोत लिए उजियार दिखा ss ये , अनहद की झंकार सुना ss ये ! / महकी ख़ुश्बू प्रेम मिलन ss की , दास बनी धरती मोहन ss की !! नमन करूँ मैं गुरु चरनन की , किरपा निधि भव ताप हरन की ! - - - - - हज़रत मंज़ूर आलम शाह ' कलंदर मौजशाही '
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