बेशर्मी ब्लैक करने वालों की,
-:: काबे किस मूंह से जाओगे गालिब,
शर्म तुमको मगर नही आती!::-
जैसे-जैसे कोरोना की आपदा बढ़ रही है व लोकडाउन की घोषणाएं हो रही है वैसे-वैसे भारतीयता का नँगापन व टुच्चापन अपने असली रूप में अवतरित हो रहा है!
बाजार में कालाबजारी व जमाखोरी अपने उफान पर है।एक रुपये की वस्तु के बीस रुपये लिए जा रहे हैं।दिहाड़ी मजदूर अपनी थोड़ी सी जमा पूंजी से ये लोकडाउन कैसे निकालेंगे?
यही जमाखोर व्यापारी सबसे अधिक सरकार को गालियां निकालते हुए मिलेंगे!
मिडिल क्लास की भी कमर टूट गई है।सब बदहवास हो रहे हैं।
बताइए कोई गरीब व्यक्ति ये सब अफॉर्ड कर पायेगा?
इस संकट की घड़ी में लोगों का लालच व नँगापन देखकर बार-बार गालिब याद आ रहे हैं----
काबे किस मूंह से जाओगे गालिब,
शर्म तुमको मगर नही आती!
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