GHAZAL-PT. SHASHIDHAR BAJPAI , AZAD
कानपुर शहर के बुज़ुर्ग शायर जो हमारे बीच में नहीं है उनकी एक बेहतरीन ग़ज़ल जो हमारे पीर हज़रत शाह मंज़ूर आलम शाह की संस्था "रसखान" के मुशायरे में वर्ष २००८ में पढ़ी थी :
** वह आये और चले गए ***
दीदार की हविश में जो दीदा-वरी गयी !
चश्मे-ख़ुदाई रह गयी, चश्मे-ख़ुदी गयी !!
रंगत तो उनमे आ गयी, ख़ुश्बू चली गयी !!
सुर्ख़ी अता जो काग़ज़ी फूलों को की गयी !
क्या शक्ल हिज्र ही में थी शक्ल-विसाले-यार
वह मौत जिसके साथ मेरी ज़िंदगी गयी!!
कुछ ऐसे नक़्श ख़ाक में बनते चले गए !
सहरा निगाह से गया , दीवानगी गयी !!
हालत मेरे जुनूं की बिगड़ती चली गयी !!
हद्दे नज़र ही तक है तमाशाये आशिक़ी
वह आये और चले गए, ये तो ख़ता न थी
~ पंडित शशिधर बाजपेई
मेरी ख़ता थी मुझसे ख़ता भी न की गयी ||
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