SHAYARI


आज़माइशें सबके वास्ते नहीं होती
वक़्त जपने दीवानो को ही आज़माता है
अपनी अपनी क़िस्मत है मयकदे को क्या कहिये
कोई बच निकलता है कोई डूब जाता है
~ नाज़ प्रताप गढ़ी
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