जब कभी जाने जिगर याद आया वो मुझे शामो-सहर याद आया जब भी उतरा मैं किसी दरिया में तेरी आँखों का भँवर याद आया - जीतेन्द्र कुमार नूर -- यूँही बे-सबबन फिरा करो , कोई शाम घर में भी रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो ! कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से , ये नये मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो ! -- काश की ख़ुदा ने दिल शीशे के बनाये होते , तोड़ने वाले के हाथों में ज़ख्म तो आए होते ! -- साँसों का शोर जिस्म की परछाई और मैं , कमरे में दो ही लोगहैं , तन्हाई और मैं ! -- कहाँ पर क्या ' हारना ' है , ये ज़ज्बात , जिसके अंदर है , चाहे दुनियाँ , फकीर समझे , फिर भी , वो ही सिकंदर है ! -- एक बात पुछु जवाब मुस्कुरा के देना , मुझे रुला कर खुश तो होना ? -- आई होगी किसी को हिज़्र मे मौत , मुझको तो नींद भी नहीं आती ! ~ अकबर इलाहाबादी -- इसलिए देख भाल करता हूँ , आईने में हुज़ूर रहते हैं ! ~ अब्दुल हमीद अदम -- तुम आँखों के करीब नही न सही , पर दिल के बहुत ही कर