SHAYARI 18.10.2022

जमाना हो गया ख़ुद से हमें लड़ते झगड़ते !

हम अपने आप से अब  सुलह करना चाहते हैं !!

कोशिश तो रोज़ करते हैं कि वक्त से समझौता कर लें !

कमबख्त दिल के कोने में छुपी "उम्मीद" मानती ही नहीं !!       

ज़ोर से मारना मुझ पर नफ़रत का वार  क्योंकि !

नफरत मुझसे टकराकर प्यार में बदल जाती है !!

इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई,

हम न सोए रात थक कर सो गई।

उनकी  आँखें  उनका  चेहरा  उनका  पैकर आइना
आइने    को   मैंने   देखा    आइना    दर    आइना

झील  के  पानी में  उनका  दिलरुबा अक्से  जमील
जैसे   रक्खा   हो   सजा   कर   आइने  पर आइना 

और बढ़ जाता है दिल की धड़कनों  का सिलसिला 
देखते  हैं  जब  कभी  वो  बन   सँवर  कर  आइना 

ये   ख़दो-ख़ाल   और  उनके  हुस्न  का ये बाँकपन
क्यों  न हो फिर आज उनसे मिलके शशदर आइना

वो   मिज़ाजे - वक़्त  से वाक़िफ़ हैं शायद इसलिए
एक-जा    होने    नहीं   देते   हैं    पत्थर - आइना

ये  दरो-दीवार, आँगन, सह्न , छत और  खिड़कियां
वो   रहें   घर  में  तो  है  ये  सारा   मन्ज़र   आइना 

हक़  बयानी  से  कभी  ग़ाफ़िल न हो  आसी क़लम
वक़्त का होता है   क्यों कि   इक   सुख़नवर आइना

- आसी यूसुफपुरी

बेवजह रूठना वो मनाना कहाँ गया

बे वक़्त हँसना और हंसाना कहाँ गया।

 

नज़रों के अब वो तीर चलाना कहां गया

दिल पर जो जा लगे वो निशाना कहां गया।

 

बचपन का वक़्त हाय सुहाना कहां गया

काग़ज़ की कश्तियों का बनाना कहां गया।

 

ख़ामोश है शजर सभी शाख़ें उदास हैं

चिड़ियों के चहचहों का ज़माना कहाँ गया।

 

वो बारिशों के दिन वो लड़कपन वो शोख़ियां

ख़ुशियों भरा वो सारा ख़ज़ाना कहाँ गया।

 

वो सुरमई सी शाम में तारोँ को ओढ़कर

सपने पलक पलक पे सजाना कहाँ गया।

 

वो चौदहवीं की रात में चँदा को देखकर

कँगन कलाइयों में घुमाना कहाँ गया।

 

दिल में हज़ारों ग़म मगर आँखें ये ख़ुश्क हैं

हर चोट पर वो अश्क बहाना कहाँ गया।

 

कितना पुकारा "अतिया"न लौटा वो फिर कभी

अंदाज़ उसमें था जो पुराना कहाँ गया।

- अतिया नूर

कोई सहारा दे मुझे  ऐसी मुझमें आस क्यों है ,

मेरे पास मैं हूं तो मुझे किसी और की तलाश क्यों है !

#+91 9140886598

नज़्म

---------

ऐ मेरी माँ

ऐ मेंरी माँ मुझे सीने से लगाने वाली

मेंरे हर नाज़ को पलकों पे उठाने वाली

मुझको दुनिया के गुलिस्तान में लाने वाली

मुझको दुनिया के उजालों को दिखाने वाली।

 

उंगलियां थाम मुझे चलना सिखाने वाली

मैं जो गिर जाऊँ तो फिर मुझको उठाने वाली।

 

मुझको सच्चाई की राहों पे चलाने वाली

ग़लतियां करने पे फिर डाँट लगाने वाली।

 

सर्द रातों की हवाओं से बचाने वाली

अपने हिस्से की रज़ाई को ओढ़ाने वाली।

 

लोरियां गाके मुझे नींद में लाने वाली

देवों-परियों के शहृ मुझको घुमाने वाली।

 

मुझको दुनिया की बलाओ से बचाने वाली

मेरी हर चोट पे ऐ अश्क बहाने वाली!!

 

तुझको बचपन से ही कम सोते हुए देखा है

अपने बच्चों के लिए रोते हुए देखा है।

 

उठ के रातों के अँधेरों में नमाज़ें पढ़ना

अपने बच्चों की हिफ़ाज़त की दुआएँ करना।

 

कितने सदमात उठाकर हमें पाला तूने

ग़म उठाकर भी ज़माने के सम्हाला तूने

 

माँ  तेरे प्यार का दुनिया में कोई मोल नहीं

कौन सी शय है तू जिसके लिए अनमोल नही।

- अतिया नूर














 

Comments

Popular posts from this blog

SRI YOGI ADITYANATH- CHIEF MINISTER OF UTTAR PRADESH

आतिफ आउट सिद्धू पर बैंड

Ghazal Teri Tasveer Se Baat Ki Raat Bhar- Lyric- Safalt Saroj- Singer- P...