SHAYARI 12.10.2022
जिस
ने इस दौर के इंसान किए हैं पैदा,
वही
मेरा भी ख़ुदा हो मुझे मंज़ूर नहीं !
~ हफ़ीज़
जालंधरी
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सिमट ना
पाए जो उलझे अल्फ़ाज़
हूँ मैं !
ज़िन्दा
ज़मीर हूँ इसलिए बुलंद आवाज़ हूँ मैं !!
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झुकिए
मगर गलत के सामने नहीं !
मौका
दीजिए सुधरने का मगर बार बार नहीं !!
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यहां
हर कोई आकर अपनी किस्मत आजमाता है !
बिना
पतवार के भी कोई सागर पार जाता है !!
पता
चलता नहीं है अबोध को इस रंगीन दुनियां में !
समय
अच्छा नहीं है तो हुनर भी हार जाता है !!
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महलों
के होड़ में गुम हो रही हैं बस्तियां,
अब
कहां सावन के झूले अब कहां वो मस्तियां !!
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सोचने दे
ज़माने को जो
सोचना है !
अगर
तेरा दिल सच्चा है तो.. नाज़ कर खुद पर !!
ना
जाने कौन सी साज़िशों के हम शिकार हो गए !
जितना दिल साफ़
रखा उतना गुनहगार हो गए !!
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आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है,
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है.
~वसीम बरेलवी
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जब
मिला शिकवा अपनों से तो ख़ामोशी ही भलीं,
अब हर
बात पर जंग हो यह जरुरी तो नहीं।
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एक
चीज़ थी जमीर जो वापिस न ला सका !
लौटा
तो है जरूर वो दुनियां खरीद कर !!
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