SHAYARI - 02-10-2022
अगर ये जिन्दगी मेरी, मुझे फिर से इनायत हो
जीयुं कुछ इस कदर जिस में न शिकवे न
शिकायत हो
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जमाना हो गया ख़ुद से हमें लड़ते झगड़ते,
हम अपने आप से अब सुलह करना चाहते हैं !
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"राह
के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो"
-राहत इंदौरी
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कुछ ख़बर है तुझे ओ चैन से सोने वाले
रात भर कौन तिरी याद में बेदार रहा
~हिज्र नाज़िम अली ख़ान
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एक जीना जग ज़ाहिर, एक जीना चुपचाप
दो-दो प्रकार से जीना पड़ता है एक जीवन कई बार
~ लीलाधर जगूड़ी
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किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझे
किस से कहूँ कि मेरा गुनहगार कौन है
~नजीब अहमद
हर इक शिकस्त-ए-तमन्ना पे मुस्कुराते हैं
वो क्या करें जो मुसलसल फ़रेब खाते हैं
~राज़ मुरादाबादी
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उसे छुआ ही नहीं जो मिरी किताब में था
वही पढ़ाया गया मुझ को जो निसाब में था
~विकास शर्मा राज़
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