SHAYARI 14-10-2022

जब कभी जाने जिगर याद आया

वो   मुझे  शामो-सहर  याद  आया

जब भी  उतरा  मैं  किसी दरिया में

तेरी  आँखों  का  भँवर  याद आया

- जीतेन्द्र कुमार नूर

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यूँही बे-सबबन फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो

वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो !

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से,

ये नये मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो !

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काश की ख़ुदा  ने दिल शीशे के बनाये होते,

तोड़ने वाले के हाथों में ज़ख्म  तो आए होते !

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साँसों का शोर जिस्म की परछाई और मैं,

कमरे में दो ही लोगहैं, तन्हाई और मैं !

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कहाँ पर क्या 'हारना' है, ये ज़ज्बात,जिसके अंदर है,

चाहे दुनियाँ, फकीर समझे, फिर भी, वो ही सिकंदर है !

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एक बात पुछु जवाब मुस्कुरा के देना,

मुझे रुला कर खुश तो होना ?

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आई होगी किसी को हिज़्र मे मौत,

मुझको तो नींद भी नहीं आती !

~ अकबर इलाहाबादी

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इसलिए देख भाल करता हूँ,

आईने में हुज़ूर रहते हैं !

~ अब्दुल हमीद अदम

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तुम आँखों के करीब नही सही,

पर दिल के बहुत ही करीब हो,

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तुम मेरी तरफ देखना छोड़ो तो बताऊँ,

हर शख्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है !

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कौन कहता है की दूरी से मिट जाती है मोहब्बत,

मिलने वाले तो ख्यालों में भी मिला करते हैं !

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