QATEEL SHIFAI -तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते !

तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते ! 
जो वाबस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहाँ जाते !!


निकल कर दैर-ओ-क़ाबा से अगर मिलता न मैख़ाना ! 
तो ठुकराए हुए इंसान ख़ुदा जाने कहाँ जाते !!


तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादा ख़ाने की !
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते !!


चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी !
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते !!


क़तील अपना मुक़द्दर ग़म से बेगाना अगर होता ! 
फिर तो अपने पराये हम से पहचाने कहाँ जाते !!

~ क़तील शिफ़ाई

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