SHAYRI-KAAM KUCH AA NA SAKI....

काम कुछ आ न सकी रस्म-ए-शनासाई भी !
शामिल-ए-बज़्म थी शायद मिरी तन्हाई भी !!
ख़ैर मैं तो इसी क़ाबिल था मगर ये तो बता ! 
ज़िंदगी क्या तू किसी को कभी रास आई भी !!
~ मुशफ़िक़ ख़्वाजा
***
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा !
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा !!
ज़िंदगी तेरी अता है तो ये जाने वाला !
तेरी बख़्शिश तिरी दहलीज़ पे धर जाएगा !!

~ अहमद फ़राज़ 

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