परमात्मा कैसे प्रसन्न होते हैं
मित्र वर ,जब किसी व्यक्ति की ही कोई वस्तु लेकर उसी को ही भेंट कर दी जाए तो क्या वह व्यक्ति प्रसन्न होगा...
नहीं .
तो हम जो कुछ भी (भौतिक वस्तुएं --- धूप,अगरबत्ती, मिठाई, इत्यादि ) परमात्मा को अर्पण करते है....उसी की वस्तु, उसे ही देते हैं तो आप का परमात्मा क्या इन उपहारों से प्रसन्न होता है ?
मित्र वर ,हमारे पास अपना क्या है ::
प्रेम का फूल ,श्रद्धा का फूल ,भाव का फूल ,समर्पण का फूल ,सबसे ज्यादा मात्रा में अहंकार का फूल है।
मित्र वर ,परमात्मा इसे ही स्वीकार करते हैं और प्रसन्न हो जाते हैं।
मनुष्य एक ऐसा वृक्ष है जिस पर दो विपरीत प्रकृति के फूल भी लगते है। प्रेम का फूल व अहंकार का फूल.....जैसे - जैसे प्रेम का फूल बड़ा होने लगता है अहंकार का फूल छोटा होने लगता है।
यह हमारे देखभाल पर निर्भर है जब हम "प्रेम के फूल" पर ध्यान देते है तो "प्रेम का फूल" बढ़ता है अगर हम "अहंकार के फूल" पर ध्यान देते है तो "अहंकार का फूल" बड़ने लगता है। मनुष्य स्वतंत्र है किस फूल को चुनना है।
मित्रवर ,प्रेम,श्रद्धा ,समर्पण के भाव के साथ अपने "अहंकार के फूल" को परमात्मा के चरणों में अर्पित करे। परमात्मा सबसे ज्यादा प्रसन्न इसी से होता है।
और तब आप खुद को इस अस्तित्व के साथ,इस ब्रह्माण्ड के साथ जुड़ा हुआ महसूस करेंगे और खुद के अंदर एक ऊर्जा के संचार की अनुभूति करेंगे।
खुद में ऊर्जा के केंद्र बिंदु होंगे और अपने आसपास के सभी लोगों के लिए ऊर्जा के स्रोत बनकर सभी को उर्जित कर रहे होंगे।
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