मां का सुंदर स्वरूप और पिता का रौद्र जी क्यों ?
क्षमा कीजिए पिताश्री !
एक बार गणेशजी ने भगवान शिवजी से कहा :
पिताजी ! आप यह चिताभस्म ,लगाकर, मुण्डमाला धारणकर अच्छे नहीं लगते,
मेरी माता गौरी अपूर्व सुंदरी! और आप उनके साथ इस भयंकर रूप में !
पिताजी ! आप एक बार कृपा करके अपने सुंदर रूप में माता के सम्मुख आएं, जिससे हम आपका असली स्वरूप देख सकें !
भगवान शिवजी मुस्कुराये और गणेशजी की बात मान ली !
कुछ समय बाद जब शिवजी स्नान करके लौटे तो शरीर पर भस्म नहीं थी , बिखरी जटाएं सँवरी हुई, मुण्डमाला उतरी हुई थी !
सभी देवता, यक्ष, गंधर्व, शिवगण उन्हें अपलक देखते रह गये,
वह ऐसा रूप था कि मोहिनी अवतार रूप भी फीका पड़ जाये !
भगवान शिव ने अपना यह रूप कभी भी प्रकट नहीं किया था !
शिवजी का ऐसा अतुलनीय रूप कि करोड़ों कामदेव के रूप को भी मलिन कर रहा था !
गणेशजी अपने पिता की इस मनमोहक छवि को देखकर स्तब्ध* रह गए और
मस्तक झुकाकर बोले -
मुझे क्षमा करें पिताजी !, परन्तु अब आप अपने पूर्व स्वरूप को धारण कर लीजिए !
भगवान शिव मुस्कुराये और पूछा- क्यों पुत्र अभी तो तुमने ही मुझे *इस रूप में देखने की इच्छा प्रकट की थी,
अब पुनः पूर्व स्वरूप में आने की बात क्यों ?
गणेशजी ने मस्तक झुकाये हुए ही कहा -
क्षमा करें पिताश्री !
मेरी माता से सुंदर कोई और दिखे मैं ऐसा कदापि नहीं चाहता !
शिवजी हँसे और अपने पुराने स्वरूप में लौट आये !
पौराणिक ऋषि इस प्रसंग का सार स्पष्ट करते हुए कहते हैं......
आज भी ऐसा ही होता है
पिता रुद्र रूप में रहता है क्योंकि उसके ऊपर परिवार की जिम्मेदारियों अपने परिवार का रक्षण ,उनके मान सम्मान का ख्याल रखना होता है तो थोड़ा कठोर रहता है...
और
माँ सौम्य,प्यार लाड़,स्नेह उनसे बातचीत करके प्यार देकर उस कठोरता का संतुलन बनाती है ।।
इसलिए सुंदर होता है माँ का स्वरूप और पिता का रौद्र ।।
पिता के ऊपर से भी जिम्मेदारियों का बोझ हट जाए तो वो भी बहुत सुंदर दिखता है ।
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