SHAYARI 12.05.2022


उनके हाथ से जिसने पी वो घर नहीं लौटा,

प्यास फिर नहीं बुझती बस यही क़यामत है !

- हुज़ूर साहेब

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 आज़माइए अपने रिश्तों को, पतझड़ में,

सावन में तो हर पत्ता हरा नज़र आता है !

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कोशिश बहुत की के राज-ए-मोहब्बत बयां न हो,

पर मुमकिन कहां है के आग लगे और धुंआ न हो.

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ये शाख़ ए गुल भी तुम्हें देखकर है शर्मिंदा,

बदन में ऐसी लताफ़त कहाँ से आई है।

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गुलों में रँग ,बहारों में कैफ़, है जिससे,

मुझे बता कि वो नक़हत कहाँ से आई है।

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कौन कहता है कामयाबी किस्मत तय करती है,

इरादों में दम हो तो मंजिलें भी झुका करती हैं !

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