SHAYARI-21-05-2022
तुम चुन सकते हो हमसफ़र नया,
मेरा तो इश्क़ है मुझे इजाज़त नहीं !
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नीचे झुक कर किसी को ऊपर उठाना,
इससे अच्छा व्यायाम दिल के लिए कोई नहीं !
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परखो तो कोई अपना नही,
समझो तो कोई पराया नहीं !
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बहुतों की आंखों की किरकिरी है वो,
बस दिल से बोलता है दिमाग से नहीं !
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भीड़ से हट कर नया जहान ढूंढो,
गलतियां सब निकालते हैं आप समाधान ढूंढो !
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चेहरे पे मेरे जुल्फों को फैलाओ किसी दिन,
क्यूँ रोज गरजते हो बरस जाओ किसी दिन,
खुशबु की तरह गुजरो मेरी दिल की गली से,
फूलों की तरह मुझपे बिखर जाओ किसी दिन।
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अगर कोशिश करें एक दूसरे को पा भी सकते हैं,
मगर एक दूसरे को पाके हम पछता भी सकते हैं।
-जावेद नसीमी
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ख़ाक उड़ती है रात भर मुझमें,
कौन फिरता है दर-ब-दर मुझमें !
मुझको ख़ुद में जगह नहीं मिलती,
तू है मौजूद इस क़दर मुझमें !
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मुकम्मल होती नहीं कभी तालीम-ऐ-जिंदगी,
यहां उस्ताद भी ता उम्र शागिर्द रहता है !
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ख़ून अपना हो या पराया हो नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर,
जंग मशरिक़ में हो कि मग़रिबमें अम्न-ए-आलम का ख़ून है आख़िर,
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर रूह-ए-तामीर ज़ख़्म खाती है,
खेत अपने जलें किऔरों के ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती
है,
टैंक आगे बढ़ें कि पीछे हटें कोख धरती की बाँझ होती है,
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग ज़िंदगी मय्यतों पे रोती
है,
जंग तो ख़ुद ही एक मसला है जंग क्या मसलों का हल देगी,
आग और ख़ून आज बख़्शेगी भूक और एहतियाज कल देगी,
इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों जंग टलती रहे तो बेहतर है,
आप और हम सभी के आँगन में शमा जलती रहे तो बेहतर है
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ग़ज़ब कि धूप थी अपनाइयत के जंगल में,
शजर बुहत थे मगर कोई सायादार न था ।
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मेरी रुह तक गया वो,
मुझे रुह तक तोड़ने के लिए।
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उनके हाथ से जिसने पी वो घर नहीं लौटा,
प्यास फिर नहीं बुझती बस यही क़यामतहै !
- हुज़ूरसाहेब
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मेरे चेहरे के दाग पे तंज कसते हो,
हमारे पास भी है आईना दिखाए क्या !
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