SHAYARI 15-05-2022
नए किरदार आते जा रहे हैं !
मगर नाटक पुराना चल रहा है !!
~राहत इंदौरी
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मैं अपने रू-ब-रू हूँ और कुछ हैरत-ज़दा हूँ मैं !
न जाने अक्स हूँ चेहरा हूँ या फिर आइना हूँ मैं !!
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उसके रंग कविता हो गए,
जब मौन मेरा स्याही हो गया !
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सुनो आओ मिलकर ढूँढ़ लेते हैं वजह फिर से एक होने की,
एक दूजे के बिन न तुम अच्छे लगते हो न मैं !
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मेरे इश्क से मिली है तेरे हुस्न को ये शोहरत,
तेरा जिक्र ही कहा था मेरी दीवानगी से पहले !
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आज धनक के रंग पिघलायें नीली पीली शाम जियें,
आओ अपनी उम्र सरीखी छैल छबीली शाम जियें !
आज ताख पर रख कर हम तुम अपनी अपनी प्यासों को,
दोनों जाम सरीखे छलके एक नशीली शाम जियें !
-पंकज अंगार
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शहर पे इल्ज़ाम लगाने से पहले खुद मे भी झाँक लें,
छूने की कोशिश होने पर हम भी तो पत्थर हो जाते हैं।
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खुशियां तकदीर में होनी चाहिए,
तस्वीर में तो हर कोई मुस्कुराता है l
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याद माजी पे निकल आते है अक्सर आसू ,
क्या खबर थी बदल जाएंगे हालात के रूख ।
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आंखों से मुस्कुराना सीख लो
होठों पर मुस्कुराहट तो मास्क ने छीन ली है
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ना इतराओ इतना, बुलंदियों को छूकर,
वक्त के सिकन्दर पहले भी कई हुए हैं,
जहाँ होते थे कभी शहंशाह के महल,
देखे हैं वहीं,अब उनके मकबरे बने हुए हैं.
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कल बुरा था ,आज अच्छा आएगा
वक्त ही तो है, रुक थोड़ी जायेगा
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