SHAYARI 01-05-2023

 

फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं 
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं 
-मुनव्वर राना
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शायद ही हमने आज तक लिक्खी कोई ग़ज़ल,

पर लग रहा है ज़हन में रक्खी कोई ग़ज़ल !

उस दिन से यही सोच कर लहरों के संग हूँ,

आ जाए बन के भंवर में कश्ती कोई ग़ज़ल !

है ग़ज़ल, गंध प्यार की खुश्बू बिखेरती,

बाज़ारू सेंट सी नहीं सस्ती कोई ग़ज़ल !

महफ़िल में आये आपसे हम रूबरू हुए,

तन मन में बन के छा गई मस्ती कोई ग़ज़ल !

जब पूछता हूँ ग़ज़ल से उसका अता पता,

तब खिलखिला के सामने हंसती कोई ग़ज़ल !

हमने उसे सम्हाल कर दिल से लगा लिया,

जब भी मिली है दोस्तों अच्छी कोई ग़ज़ल !

- प्रेम किशोर ‘पटाखा’




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