SUFI QALAQM - MAIN TERE KARAM KE SADKE TERE DAR PE KYA NAHI HAI
मैं तेरे करम के सदके तेरे दर पे क्या नहीं है !
मुझे और कोई ऐसा कहीं दर मिला नहीं है !!
कभी भूल कर न जाऊं कहीं और सजदा करने !
वही दर ब दर फिरेगा जो कहीं बिका नहीं है !!
वो है काबये मोहब्बत उसे दिल में रख लिया है !
कहीं कोई इस जहां में मेरे यार सा नहीं है !!
मैं तलाश में था जिसकी वही छाँव पा गया हूँ !
कि ये और सब हटा दो मेरे काम का नहीं है !!
यही मैकदा है जिसमे रहे मस्त होके मय कश !
कोई दैरो क़ाबा ऐसा अभी तक बना नहीं है !!
~ हज़रत शाह मंज़ूर आलम "कलंदर मौजशाही" ( हुज़ूर साहेब )
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