SOCHA HAI SHAHANSHA KAHUN - SUFI KALAM


सोचा है शहंशाह कहूँ ऐसा लगो हो !
ए तुम तो अजब शान से इस दिल में रहो हो !!

इक मौज-ए -तिलस्मात है ये हुस्न तुम्हारा !
शीशा सा खनक जाए है जब बात करो हो !!

फिर क़ैद से उस ज़ुल्फे दुता के नहीं छूटा !
जिस पर भी नज़र डालो करामात करो हो !!

सजदों के निशां दैर ओ हरम जाके पड़े तो !
बे पाए सनम कुछ न मिला ये भी सुनो हो !!

आती हुई सद रंग की बौछार मिलेगी !
उस सहने चमन की तरफ़ ए यार चलो हो !!


~ हज़रत शाह मंज़ूर आलम "मौजशाही कलंदर"

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