यूँ देखते हो क्यूँ मुझे नज़रें उठा के तुम !
दीवाना कर रहे हो तमाशा बना के तुम !! 
सुनते हैं एक नूर है रोशन हिजाब में ! 
दिखला दो इक झलक ज़रा परदा उठा के तुम !!  
मैं हूँ तुम्हारा और तुम्हारा रहूँगा मैं !
क्यों आज़मा रहे हो मुझे आज़मा के तुम !!
हमको बनाया आइना दीदार के लिए !
अब मुस्करा रहे हो ये सूरत मिटा के तुम !!
रुसवाइयों का ख़ौफ़ था रुसवाइयाँ मिलीं !
अब क्या करोगे राज़-ए-मोहब्बत छुपा के तुम ॥ 
ये चाँद आसमा से ज़मीं पर उतर  पड़े !
एक बार देख लो जो इसे मुस्करा के तुम !! 
ज़ीशान तुमने दिल को सनम खाना कर लिया ! 
अब क्या करोगे सू-ए -हरम सर झुका के तुम !!
~ ज़ीशान नियाज़ी 

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