-:: असहिष्णुता ::-
-:: असहिष्णुता ::- मैं शांति से बैठा अपना इंटरनेट चला रहा था...तभी कुछ मच्छरों ने आकर मेरा खून चूसना शुरू कर दिया तो स्वाभाविक प्रतिक्रिया में मेरा हाथ उठा और चटाक हो गया । और एक-दो मच्छर ढेर हो गए... फिर क्या था उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया कि , मैं असहिष्णु हो गया हूँ..!! मैंने पूछा.. , " इसमें असहिष्णुता की क्या बात है.. ?" वो कहने लगे.. , " खून चूसना उनकी आज़ादी है.." बस "आज़ादी" शब्द सुनते ही कईं बुद्धिजीवी उनके पक्ष में उतर आये और बहस करने लगे.. इसके बाद नारेबाजी शुरू हो गयी..!! " तुम कितने मच्छर मारोगे.. हर घर से मच्छर निकलेगा.." बुद्धिजीवियों ने अख़बार में तपते तर्कों के साथ बड़े-बड़े लेख लिखना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि .. , मच्छर देह पर मौज़ूद तो थे लेकिन खून चूस रहे थे ये कहाँ सिद्ध हुआ है .... और अगर चूस भी रहे थे तो भी ये गलत तो हो सकता है लेकिन ' देहद्रोह ' की श्रेणी में नहीं आता... क्योंकि ये "मच्छर" बहुत ही प्रगतिशील रहे है..किसी की भी देह पर बैठ जाना इनका ' सरोकार ' रहा है। मैंने