::- एक रुपए का जुर्माना ::-
::- एक रुपए का
जुर्माना ::-
एक थे नवाब! पंचकौड़ी थे। किसी मुकदमे में जज के इजलास में
पेशी हो गयी। घोड़ा दनदनाते हुए कचहरी पहुँचे और रास पकड़े हुए ही अदालत में घुस
गये।
जज को यह बात खटक गयी और मुकदमे को तो अगली तारीख पर टाल
दिया किन्तु पंचकौड़ी पर 1000₹ जुर्माना
ठोंक दिया।
पंचकौड़ी ने वहीं के वहीं दंड भर दिया। अगली पेशी में फिर
से घोड़ा लेकर इज्लास में चले गए। जज सनाका खा गया। इस बार उसने दंड की राशि 5000₹ कर दी।
पंचकौड़ी ने अपने मुनीम को बुलाया और हर्जाना भर दिया।
अगली पेशी हुई तो लोग यह तमाशा देखने पहुँचे कि पंचकौड़ी
नवाब क्या करते हैं?
अब पंचकौड़ी को मजा आने लगा था। उन्हें जज की तथाकथित तौहीन
करने में रस मिलने लगा था। उस दिन जब जज की इज्लास में पंचकौड़ी घोड़े की लगाम
थामे पहुँचे तो जज का माथा ठनका।
उसने सलाह की और पंचकौड़ी पर 1₹ का
जुर्माना लगाया।
पंचकौड़ी इस तौहीनी से विचलित हो गये, उनकी मूँछ
नीचे हो गयी।
एक रुपए का जुर्माना उन्हें अपनी हैसियत के खिलाफ लगा।
उन्हें लगा, जैसे किसी
ने उनकी नवाबी छीन ली है और उनके मुँह पर अलकतरा लगा दिया है। जैसे किसी ने सरेआम
थप्पड़ जड़ दिया हो।
उन्होंने चुपके से दंड भरा और बुझे कदमों से घर लौटे। अपनी
हैसियत पर लगे इस चोट से वह ऐसे बेहाल हुए कि फिर कभी कोर्ट नहीं गये। उन्हें जीवन
भर इसका मलाल रहा कि जज ने उनकी औकात 1₹ की समझी।
हालांकि अब वह सामन्ती व्यवस्था नहीं है लेकिन अदालत की यह
व्यवस्था कालजयी है।
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