-:: मेरे शिकारी दादाजी ::-
-:: मेरे दादाजी ::-
रौबीला चेहरा.. घुमावदार बडी बडी
मूंछ…आँखों में
चमक …हाथों में
दोनाली बंदूक और पैरो के पास पड़ा हुआ कम से कम 10 फुटा बब्बर शेर…
पेंटिंग्स की दुकान में तस्वीरें
देखते देखते मैं अचानक इस तस्वीर के सामने रुक गया और एकटक देख जा रहा था... उस
तस्वीर ने जैसे मुझको जकड़ सा लिया था …
5000 /-रु…मेरे पूछने पर दुकानदार ने उस तस्वीर की कीमत बताई…
हालांकि कीमत कुछ ज्यादा लगी फिर
भी मेंने अपनी जेब से रुपये निकाल कर गिने तो वे महज 4500/- ही निकले
तब मेंने उस दुकानदार से वह
तस्वीर 4500/- रु मे
बेचने का आग्रह किया किंतु दुकानदार ने मना कर दिया…
दो दिन बाद जब में पूरे 5000/- रु लेकर दुकान पर पहुँचा तो पाया
कि वह तस्वीर तो बिक चुकी है कई महीनों तक मुझे वो तस्वीर ना खरीद पाने का मलाल
रहा…
आज 4 वर्ष के पश्चात अपने मित्र के
ड्राइंगरुम की शोभा बढ़ाते हुऎ उसी तस्वीर को देखकर मेंने जब अपने मित्र से पूछा ……..
तो …
उसने बताया कि ये उनके दादाजी की
तस्वीर है….
बहुत ही बड़े शिकारी थे दादाजी…
बीसियों शेरो का शिकार किया था
दादाजी ने अकेले ही...
कई अंग्रेज अपॉइंटमेंट लेते थे
दादाजी से शिकार करने को …
तब मित्र की बातें सुन मन ही मन
में सोच रहा था ….कि साले उस दिन पाँच सौ रुपये कम पड गऎ थे …….
वरना आज ये मेरे दादाजी होते !!!
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