GEET-UTHO FIR CHALO TUM
स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के अवसर पर मेरी नयी रचना
उठो फिर चलो तुम और तब तक चलो तुम
कि जब तक न मंज़िल तेरे पास आये
ये स्वामी विवेकानंद ने कहा था
जिसे जीतना हो इसी आज़माये
जो गिरने से डरते भला क्या चलेंगे
वो पीछे से सबको आवाज़ देंगे - २
उसी का है जीवन उजालों से रौशन
मुक़द्दर का दीपक जो ख़ुद ही जलाये
हो इंसान तुम भी हैं इंसान हम भी
हो भगवान् तुम भी हैं भगवान् हम भी - २
जो करना है ख़ुद ही करो तुम यहां पे
कोई सर कभी न कहीं पे झुकाये
परमहंस जैसे गुरु से ली दीक्षा
ज़माने में फैली है स्वामी की शिक्षा - २
जो स्वामी की वाणी रटे रोज़ प्राणी
नहीं ज़िन्दगी में कभी कष्ट आये
रचयिता: प्रदीप श्रीवास्तव, "रौनक़ कानपुरी"
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