शायरी

निकले चिलमन से वो एक उजाला हुआ !
और फिर उनकी सूरत नज़र आ गई !!
हमने चाहा था महफ़िल में ऐसा न हो !
क्या करें आंख से आंख टकरा गई !!
~ प्रदीप श्रीवास्तव"रौनक़ कानपुरी"

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