किसान और आत्महत्या

पूरे देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं और फिर किसानों का ये धरना प्रदर्शन जो पिछले करीब तीन महीने से चल रहा है उसके बावजूद सरकार किसानों के मुद्दों को लेकर सुस्ती दिखा रही थी तो दूसरी तरफ नीति आयोग जरूर किसानों की आय पर कर लगाने की सिफारिश कर रही है। पूरे देश में किसानों द्वारा अलग -अलग जगहों अब एक नए तरीके का प्रदर्शन शुरू हुआ है क्योंकि किसानों ने पहले कभी भी इस तरह का हड़ताल नहीं किया है वैसे इस बार ये आंदोलन बाढ़ या सूखे जैसी प्राकृतिक आपदा न होकर बंपर पैदावार है। आखिर कारपोरेट घरानों के छह लाख करोड़ का कर्जा जब सरकार माफ करने को तैयार है, तो फिर किसानों का कर्ज क्यों नहीं।

भारत हर साल दो करोड़ पैंसठ लाख टन अनाज का उत्पादन करता है, फिर भी देश के बहुत से लोगों को भूखे पेट रहना पड़ता है। वहीं दूसरी ओर किसान हैं जिन्हें अपने उत्पाद का सही दाम भी नहीं मिल पा रहा है और कर्ज के बोझ तले दबे ये किसान उत्पादों की सही कीमत न मिलने पर आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। किसान जब अपने उत्पादों को बाजार में बेचने जा रहा है तो उसे वाजिब कीमत नहीं मिल रही है, लेकिन इस कम कीमत का फायदा भी उपभोक्ता को नहीं मिल पा रहा है।

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