Mushaira_Dr. Mehandi Jafri_ Kaise Hamne Ro Ro Kata_कैसे हमने रो रो काटा ...

ग़ज़ल

कैसे हमने रो रो काटा एहदे जवानी लिखियेगा,

मेहंदी साहब लिखियेगा फिर मीर का सानी लिखियेगा !

 

हुस्न की मलिका लिखियेगा या रूप की रानी लिखियेगा,

अपनी मुसीबत लिखियेगा तब उसकी जवानी लिखियेगा

 

उन आँखों में ग़ज़लों के शादाब ज़जीरे कितने हैं,

फूलों की ज़बां से सुनियेगा काँटों की ज़बानी लिखियेगा !

 

उस काग़ज़ पर भूल से मेरी तशनालबी का ज़िक्र न हो,

जिस काग़ज़ पर दरिया शबनम आंसू पानी लिखियेगा !

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बरसों मैंने गौर किया फिर ख़ुश्बू लिख कर छोड़ दिया,

उसने कहा था मुझसे बिछड़ कर मेरी कहानी लिखियेगा !

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बाद मेरे जब मेरा किस्सा लिखने वाले लिख डालें,

बारी जब उन्वान की आए तश्नादहानी लिखियेगा !

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कशकोल-ए-तलब तो भरने दे, कुछ बात तो पहले बनने दे,

फिर जिल्लेईलाही बनिएगा, फ़ज़ले सुभानी लिखियेगा !

शायर – डॉ. सैय्यद मेहंदी जाफ़री


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