SUFI - मैं तो श्याम सुंदर संग खेलूँगी होली~ हज़रत शाह मंजूर आलम “कलंदर मौजशाही”
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TO SHYAM SUNDER SANG KHELUNGI HOLI
मैं
तो श्याम सुंदर संग खेलूँगी होली
चित्त
लाग गई जो भी होनी थी हो ली
कोई
रंग चढ़े , मेरी बात बने
मेरे
भाग जागे, मोरे पिया जो मिले
मोरे
पिया जो मिले तो मैं खेली रे खेली
चित्त
लाग गई जो भी होनी थी हो ली
मैं
तो श्याम सुंदर संग खेलूँगी होली
पिया
तेरी भली, हर बात बड़ी
मैं
तो हार गई, मेरी कुछ न चली
जाने
कैसी है क्या तेरी गली रे गली
चित्त
लाग गई जो भी होनी थी हो ली
मैं
तो श्याम सुंदर संग खेलूँगी होली
तोरे
पइयाँ पड़ूँ, जो है मन मे कहूँ
कहो
काहे डरूँ, तोरी होके रहूँ
मेरे
मन की कली, अरे खिली रे खिली
चित्त
लाग गई जो भी होनी थी हो ली
मैं
तो श्याम सुंदर संग खेलूँगी होली
~ हज़रत शाह मंजूर आलम “कलंदर मौजशाही”
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ReplyDeleteहुज़ूर साहब कमाल का लिखते थे। आदर एवं नमन!
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