ROOH-E-SHAYARI

1

बहुत से लोग आपको जानते है !

परंतु कुछ ही आपको समझते हैं !!

2

अपने अंदर ही डूब जाने का !

क्या समंदर को मुँह लगाने का !!

3

आसमां पे ठिकाने किसी के नहीं होते !

जो ज़मीं के नहीं होते, वो कहीं के नहीं होते !!

4

है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है

कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बदमिज़ाज सी शाम है

कहाँ अब दुआओं कि बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें

ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मुतालबों का सलाम है

यूँ ही रोज़ मिलने की आरज़ू बड़ी रख रखाव की गुफ्तगू

ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है

वो दिलों में आग लगायेगा मैं दिलों की आग बुझाऊंगा

उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है

न उदास हो न मलाल कर, किसी बात का न ख़याल कर

कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज की शाम है

कोई नग्मा धूप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम की छाँव सा

ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है

5

आसमान में उड़ने वाले जरा ये खबर भी रख !

जन्नत पहुँचने का रास्ता मिट्टी से ही गुजरता है !!

6

6कस्बा दिया था आपको, शहर बना दिया

कितनों को रोज़गार दिया, घर बना दिया

किस तरहा शुक्रिया हुज़ूर, आप का करें

तकदीर बना दी है, मुक़द्दर बना दिया ।

7

वो और होंगे जिन्हेँ इश्क़ ने बना डाला,

हमें कहीं का ना छोड़ा हमें मिटा डाला ।

-असद अजमेरी

8

गिरते हैं जब ख्याल, तो गिरता है आदमी .

जिसने इन्हें संभाला, वो खुद संभल गया ।।

9

कैसा अजीब दौर आया है, जो बीमार होगा वो तन्हा रहेगा,

और  जो  तन्हा  रहेगा वो  बीमार  नहीं  होगा।

10

कोई दोस्त है ना रक़ीब है ।

ये शहर कितना अजीब हैं ।।

यहां किससे हम मिला करें ।

यहां कौन अपने क़रीब है ।।

11

मुद्दतें गुज़र गई, हिसाब नहीं किया.

न जाने अब,किसके कितने रह गए हैं हम !

12

कच्चे धागे की गांठ लगा कर ही ।

पक्के रिश्तों की मन्नत मांगी जाती है ।।

13

ख़ामोशी की तह में, छुपा लीजिए सारी  उलझनें;

शोर कभी मुश्किलों को आसान नहीं करता!

14

ख्वाहिशो ने ही भटकाये है, जिंदगी के रास्ते साहब वरना,

रूह (आत्मा )तो उतरी थी ज़मीं पे, मँजिल का पता लेकर ।

15

मुझको पता नहीं है तेरे दिल का रास्ता।

तू ही बता दे मील का पत्थर उदास है।।

- अरुण सरकारी

16

कहीं  तो  होगा  जहां  मेँ  नगर  कोई  ऐसा ।

जहाँ पे मिलके बिछड़ना हो जुर्म में शमिल ।।

- असद अजमेरी

17

वो दोस्त बनके मेरे साथ रहा है बरसों ।

यही दोआ है के तन्हाई ना सताये उसे ।।

- असद अजमेरी

18

उम्मीद -ऐ वफ़ा  आपसे" थी छोड़ दी मैंने ।

लेकिन जो मोहब्बत है वो अय दोस्त रहेगी ।।

- असद अजमेरी

19

बड़ा नाज़ुकबदन समझे हुये थे हम असद जिसको ।

उसी ने  तोड़  डाला दिल  हमारा एक  झटके  से ।।

20

मै  हूँ अख़बार मुझे अपने समझा क्या है

एक अफ़वाह उड़ा दूँ तो नगर  जल जाये

- असद अजमेरी

21

रोज जले फिर भी ना खाक हुए,

अजीब है या इश्क बुझ कर भी ना राख हुए ।


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