-:: जिस हाल में हैं जैसे हैं प्रसन्न रहें ::-


-:: जिस हाल में हैं  जैसे हैं प्रसन्न रहें ::-

आखिर अंतर रह ही गया !

1) बचपन में जब हम रेल की सवारी  करते थे, माँ घर से खाना बनाकर ले जाती थी, पर रेल में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखते, तब बड़ा मन करता था कि हम भी खरीद कर खाएँ!

पिताजी ने समझाया- ये हमारे बस का नहीं! ये तो अमीर लोग हैं जो इस तरह पैसे खर्च कर सकते हैं, हम नहीं!

बड़े होकर देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहे हैं, तो "स्वास्थ सचेतन के लिए", वो लोग घर का भोजन ले जा रहे हैं

आखिर अंतर रह ही गया

 2) बचपन में जब हम सूती कपड़े पहनते थे, तब वो लोग टेरीलीन पहनते थे! बड़ा मन करता था, पर पिताजी कहते- हम इतना खर्च नहीं कर सकते!  

बड़े होकर जब हम टेरीलीन पहने लगे, तब वो लोग सूती कपड़े पहनने लगे! सूती कपड़े महँगे हो गए! हम अब उतने खर्च नहीं कर सकते थे!

 आखिर अंतर रह ही गया.

 3) बचपन में जब खेलते-खेलते हमारा पतलून घुटनों केपास से फट जाता, माँ बड़ी कारीगरी से उसे रफू कर देती, और हम खुश हो जाते थे। बस उठते-बैठते अपने हाथों से घुटनों के पास का वो रफू वाला हिस्सा ढँक लेते थे!

बड़े होकर देखा वो लोग घुटनों के पास फटे पतलून महँगे दामों  में बड़े दुकानों से खरीदकर पहन रहे हैं!

आखिर अंतर रह ही गया.

 4) बचपन में हम साईकिल बड़ी मुश्किल से पाते, त वे स्कूटर पर जाते! जब हम स्कूटर खरीदे, वो कार की सवारी करने लगे और जबतक हम मारुति खरीदे, वो बीएमडब्लू पर जाते दिखे!

और हम जब रिटायरमेन्ट का पैसा लगाकर  BMW खरीदे, अंतर को मिटाने के लिए, तो वो साईकिलिंग करते नज़र आए, स्वास्थ्य के लिए।

आखिरअंतर रह ही गया.

हर हाल में हर समय दो लोगो में "अंतर" रह ही जाता है।

"अंतर" सतत है, सनातन है,

अतः सदा सर्वदा रहेगा।

कभी भी दो व्यक्ति और दो परिस्थितियां एक जैसी नहीं होतीं।  कहीं ऐसा न हो कल की सोचते-सोचते आज को ही खो दें और फिर कल इस आज को याद करें।

इसलिए जिस हाल में हैं... जैसे हैं... प्रसन्न रहें।

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