ROOH-E-SHAYARI
1
इलाही कैसी कैसी सूरतें तूने बनाई हैं,
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल
है ।
- अकबर इलाहाबादी
2
बारिश
के बाद रात आइने सी थी,
एक
पैर पानी में पड़ा और चाँद हिल गया
3
ना
चाँद अपना था और ना तू अपना था,
काश
दिल भी मान लेता की सब सपना था,
4
क्या
बतलाऊं सुविधाओं में कैसे कैसे ज़िंदा हूँ !
गुलदस्ते
में फूल सजा कर फूलों से शर्मिन्दा हूँ !!
उलझन
तो शाइर को बहुत थी, कैसे मुक़म्मल होए ग़ज़ल !
जिसको
वो न निकाल सका मै ऐसा शेर चुनिन्दा हूँ !!
~ अशोक चक्रधर
5
दरिया
को अपनी मौज की मस्तियों से मतलब
कश्ती
किसी की पार हो या दरमयां रहे
6
तलब
की राह में पाने से पहले, खोना पड़ता है,
बड़े
सौदे नज़र में हो तो छोटा होना पड़ता है !
7
हम
नादाँ थे जो उन्हें हमसफर समझ बैठे
वो
चलते थे मेरे साथ पर किसी और की तलाश में
8
चलते-चलते
मुझसे पूछा मेरे पांव के छालों ने
बस्ती
कितनी दूर बसा ली, दिल में बसने वालों में
9
जिनके
होटों पे हंसी पांव में छाले होंगे ।
हां
वही लोग तेरे चाहने वाले होंगे ।।
10
कभी
चाल कभी मकसद, कभी मंसूबे यार होते हैं ।
इस
दौर में नमस्कार के, मतलब भी हजार होते हैं
11
सफ़र
की मुश्किलें आसान होती हैं दुआओं से।
मिले
साये बुज़ुर्गों के तो दुश्वारी नहीं होती।।
-अरुण सरकारी
12
वो
लड़कर सो भी जाए तो उसका माथा चूमूँ,
उससे
झगड़ा एक तरफ है उससे मोहब्बत एक तरफ है.
13
उस
मुस्कान से खूबसूरत और कुछ नहीं है,
जो
आंसुओं से संघर्ष कर आती है
14
ये
बात समझने में उम्र लग गई कि,
बेगुनाह
होना भी एक गुनाह है !
15तन्हाई के आलम मे पुरज़ोर मचाती है,
मेरे
अंदर की ख़ामोशी शोर मचाती है ।।
~ भूमिका भूमि
16
ये
उनकी मोहब्बत का नया दौर है
जहाँ
कल हम थे आज कोई और है !
17
ज़िन्दगी
की हर राह पर इम्तिहान है,
घबराना
कैसा ये तो विधि का विधान है !
18
सर
झुकाने की खूबसूरती भी क्या कमाल की रही.
मैंने
घरती पर सर रखा और दुआ आसमान पर स्वीकार हो गई.
19
नज़रअंदाज़
किया है उसने,
ख़ुद
से मिलने के बहाने निकले !
20
कभी
बेपनाह बरसी कभी गुम सी है
ये
बारिश भी कुछ कुछ तुम सी है
21
उदास
फिरता है अब मोहल्ले में बारिश का पानी,
कश्तियां बनाने वाले बच्चे मोबाइल से इश्क़ कर बैठे ।
Comments
Post a Comment