हरतालिका तीज, जानें कैसे पड़ा यह नाम?
हरतालिका तीज, जानें कैसे पड़ा यह नाम?
हरतालिका- हरित और तालिका दो शब्दों से मिलकर बना है। हरित का अर्थ होता है हरण करना, तालिका का मतलब है सखी और तीज शब्द तृतीया तिथि से लिया गया है। इस व्रत को हरितालिका इसलिए कहा जाता है, क्योंकि माता पार्वती की सखी उन्हें उनके पिता के घर से हरण कर जंगल में लेकर चली गई थीं ताकि माता पार्वती के पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न करा दें। इस प्रकार इस पर्व का नाम हरतालिका तीज पड़ा। हरतालिका तीज व्रत जितना फलदायी है, उतने ही ज़्यादा कठिन इसके नियम हैं। माना गया है कि इस व्रत के नियम हरियाली तीज और कजरी तीज के व्रत से भी ज़्यादा कठोर हैं।
हरतालिका तीज व्रत की कथा
लिंग पुराण की कथा के अनुसार एक बार मां पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए गंगा के तट पर घोर तप करना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्होंने कई दिनों तक अन्न और जल ग्रहण नहीं किया। माता पार्वती को तप करते हुए कई वर्षों बीत गए। उनकी स्थिति देखकर उनके पिता हिमालय अत्यंत दुखी थे। एक दिन महर्षि नारद पार्वती जी के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर आए। नारदजी की बात सुनकर माता पार्वती के पिता ने कहा कि अगर भगवान विष्णु यह चाहते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं। लेकिन माता पार्वती को जब यह बात पता चली तो, वे फूट-फूट कर रोने लगी।
उनकी एक सखी के पूछने पर बताया कि, वो भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाना चाहती हैं, इसीलिए वो कठोर तपस्या कर रही थी। लेकिन उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में मैं अपने प्राण त्याग दूंगी। माता पार्वती की सहेली उन्हें इस परिस्थिति से बचाने के लिए अपने साथ वन में लेकर चली गई ताकि उनके पिता उन्हें वहां ढूंढ न पाएं। माता पार्वती जंगल में एक गुफा में भगवान शिव की आराधना करने लगी। भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन हस्त नक्षत्र में माँ पार्वती ने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण किया और रात्रि जागरण कर भोलेनाथ की सच्चे मन से आराधना की। माँ पार्वती के कठोर तपस्या को देखकर शिव जी का आसन हिल गया और उन्होंने माता पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि
हरतालिका तीज के दिन माँ पार्वती और भगवान शंकर की पूरी विधि-विधान से प्रदोषकाल में पूजा की जाती है। दिन और रात के मिलन का समय प्रदोषकाल कहा जाता है। चलिए जानते हैं इस दिन के व्रत की पूजा विधि के बारे में-
व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करें और नए वस्त्र पहन लें।
इस दिन सुहागिन स्त्रियों को लाल रंग के वस्त्र पहन सोलह श्रृंगार करना चाहिए।
हरतालिका पूजा करने के लिए सबसे पहले भगवान शिव, माँ पार्वती और भगवान गणेश की रेत व मिट्टी की प्रतिमा बनाएँ।
अब पूजा स्थल को अच्छे से साफ़ कर एक चौकी रखें। चौकी पर केले के पत्ते रखकर उसे अच्छे से सजा लें। अब भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा को वहां स्थापित करें।
इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश के साथ-साथ सभी देवी-देवताओं की पूरे विधि-विधान से पूजा करें।
अब एक पिटारे में सुहाग की सारी वस्तुएँ रखकर माता पार्वती को चढ़ा दें और शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाएं।
पूजा समाप्त होने के बाद हरतालिका तीज की कथा सुनें।
इस दिन व्रती को रात्रि के समय सोना नहीं चाहिए। इसीलिए रात के वक़्त जागरण करें और भजन करते हुए पूरी रात बिताएं।
व्रत के अगले दिन विधिपूर्वक पूजा करें और माता पार्वती को चढ़ाई गई सुहाग की सभी चीज़ें ब्राह्मण को दान में दे।
पूजा के बाद अपना व्रत खोलें ।
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