ROHH-E-SHAYARI

हम गुलामो को काफ़ी हैं उनके क़दम,
उनकी मर्ज़ी पे है बख़्श दे जो करम,
शर्त ये हैं गुलामी में इतनी मगर,
रख के सर फिर उठाना नहीं चाहिए !
- हज़रत मंज़ूर आलम शाह "कलंदर मौजशाही"

Comments

Popular posts from this blog

GHAZAL LYRIC- झील सी ऑंखें शोख अदाएं - शायर: जौहर कानपुरी

Ye Kahan Aa Gaye Hum_Lyric_Film Silsila_Singer Lata Ji & Amitabh ji

SUFI_ NAMAN KARU MAIN GURU CHARNAN KI_HAZRAT MANZUR ALAM SHAH