ROOH-E-SHAYARI
दुश्मन हमारे मिल के बड़ा दाव चल गये,
हम लड़खड़ा गए थे मगर फिर सम्हाल गए
दरिया में डाल आये थे मिल कर मुझे रक़ीब,
ज़िन्दा हूँ देख कर वो अचानक उछल गए
- अक्स वारसी
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की भूलने की कोशिश, और याद करके रोये,
हर बार ख़ुद को ही आज़मा करके
रो लिए !
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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वही लोग कि जो काटते थे
रात-दिन शजर,
धूप में जले तो साया-ए-शजर
में आ गए !
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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कई राज़ मुन्तज़िर हैं कहे
जाने को,
जवाब सारे तैयार हैं मगर
सलाम तो आये !
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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हमसे नहीं तो हमारी ग़ज़ल से
ही,
वो दिल लगाएँ तो हमको चैन
पड़े !
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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तू तो कहता था बिछड़े तो मर
जायेंगे,
तुझसा कोई भी वादा-शिकन न
मिला
- फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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यूँ ही मौसम की अदा देख के
याद आया है
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं
इन्साँ जानाँ
ज़िन्दगी तेरी अता थी सो
तेरे नाम की है
हम ने जैसे भी बसर की तेरा
एहसाँ जानाँ
- अहमद फ़राज़
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ये जो शहतीर है पलकों पे उठा
लो यारो
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो
यारो
दर्दे—दिल वक़्त पे पैग़ाम भी
पहुँचाएगा
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से
पालो यारो
लोग हाथों में लिए बैठे हैं
अपने पिंजरे
आज सैयाद को महफ़िल में बुला
लो यारो
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा
देखेंगे
आज संदूक से वो ख़त तो
निकालो यारो
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा
है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को
सँभालो यारो
कैसे आकाश में सूराख़ हो
नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो
यारो
लोग कहते थे कि ये बात नहीं
कहने की
तुमने कह दी है तो कहने की
सज़ा लो यारो
- दुष्यंत कुमार
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मिलाता हूँ मैं जितनी भी शकर बढ़ती ही
जाती है
नहीं चखनी थी तुमको मिर्च भी मेरी रसोई
से।।
क़ासिद देहलवी
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कल जब मस्जिद बुला रही थी वक़्त नहीं था जाने का
आज वक़्त है" तो मस्जिद ने रोक दिया है आने से
असद अजमेरी
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मै इक किताब था वो भी खुली हुई लेकिन
मेरा नसीब" के मै
जाहिलों के हाथ में था
- असद
अजमेरी
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मिलने की आरज़ू थी तो फुरसत नहीं मिली
फुरसत मिली है आज तो अब आरज़ू नहीं
- असद
अजमेरी
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