SHAYARI

कुछ लोग थाली पीटकर बदनाम हो गए, कुछ डॉक्टरों को पीटकर भी मासूम बने रहे!
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अपने कदमो में मेरा सर ये झुका रहने दो दर पे अपने हमको यूँ ही पड़ा रहने दो कुछ निगाहें करम हम पे भी कर दे अपने मुझे दिल में अपने यूँ ही बना रहने दो - लक्ष्मण दावानी
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वो क्या समझेंगे उजालों के हुस्न को, जो लोग अंधेरों से कभी सोहबत नहीं करते ! - फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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इश्क़ गुनाह है तो हम काफ़िर बेहतर, इश्क़ मर्ज़ है तो फ़िर शिफ़ा क्या है ! - फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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बिन बोले जिसे सब समझ जाते थे, बे-लफ्ज़ वही बचपन की ज़बाँ चाहिए ! - फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
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उफ़ परेशान ग़म के मारे लोग, दरबदर फिर रहें हैं सारे लोग । शर्म अब भी नहीं है कहते हो, ये हमारे हैं वो तुम्हारे लोग । - एजाज़ उल हक़ "शिहाब"
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काश मिल जाय हमें कोई कोई मनाने वाला रूठ जाने का मज़ा हम भी उठायें इक दिन - असद अजमेरी
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दुख की तपती दोपहरी के बाद मिलेगी ठण्डक भी यह विश्वास दिला जाते हैं ये दीवारों के साये - दरवेश भारती
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आदतन यूँ सोचता है हर कोई उसके साये से नहीं बेह्तर कोई - डॉ. दरवेश भारती
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करके दिखा दिया है जो 'दरवेश' प्यार ने वो काम काइनात में दौलत न कर सकी - डॉ दरवेश भारती
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वो ऊपर उठने की कोशिश करे हज़ार भले ज़मीं, ज़मीं है रहेगी ये आसमां के तले - डा दरवेश भारती
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चढ़ते सूरज से दोस्ती क्या की अपने साये से हाथ धो बैठे - डा दरवेश भारती
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जो छाँव औरों को दे ख़ुद कड़कती धूप सहे किसी किसी को ख़ुदा यह कमाल देता है - डा दरवेश भारती
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निखरते हैं वही कुंदन की तरह जीवन में जो जिद्दो-जहद की भट्टी में तपते रहते हैं - डा दरवेश भारती
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जब महब्बत का किसी शय पे असर हो जाए एक वीरान मकां बोलता घर हो जाए - डा दरवेश भारती
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मेरी औक़ात से बढ़कर मुझे देना न कुछ मालिक ज़रूरत से ज़ियादा रोशनी बेनूर करती है - डा दरवेश भारती
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ज़िन्दगी जीने का जिसने भी हुनर सीख लिया मस्अला कोई भी उसके लिए मुश्किल है कहाँ - डा दरवेश भारती
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जितना भुलाना चाहें भुलाया न जाएगा
दिल से किसी की याद का साया न जाएगा - डा दरवेश भारती
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इसे लेने में कोताही न हरगिज़ कीजिए साहिब बुज़ुर्गों की दुआ ही हर बला को दूर करती है - डा दरवेश भारती
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ज़बां पे आपकी देखें तो कैसा लगता है हमारे नाम से, हमको ज़रा पुकारो तो - असद अजमेरी - - - -
आदमी ज़िन्दा रहे किस आस पर छा रहा हो जब तमस विश्वास पर - डा दरवेश भारती
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जो ताल्लुक है चमन में फूल का खुशबू के साथ॥
है वही रिश्ता मुसलमाँ का यहाँ हिंदू के साथ॥

है वही निस्बत हमारी सरज़मींन ए हिंद से ॥
जो है निस्बत शायरी में मीर की उर्दू के साथ ॥

आरज़ी है हुस्न ए दुनिया दर हक़ीक़त दोस्तों॥
इसलिए ही आम्रपाली चल पड़ी भिक्षु के साथ ॥

लड रहे थे जंग दोनों मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में ॥
में था हक़ के साथ और वो क़ुव्वत ए बाज़ू के साथ॥

जिस तरह से चाँद चमके बदलियों के बीच में ॥
इस तरह चेहरा था रौशन तुर्रे ए गैसु के साथ ॥

कल जिसे मैंने सिखाये थे अलिफ़ बे ते बिलाल ॥
बात वो करता है मुझसे आज कल बे तू के साथ॥
बिलाल सहारनपुरी

इधर हमने गुपचुप कोई बात की उधर कान बनने लगी खिड़कियाँ - डा दरवेश भारती
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ये कैसा दौर है आया कि जिसमें हर मासूम सियासी साजिशों का बन रहा निवाला है - डा दरवेश भारती
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आज तक जो बाप से सुनता रहा था बाप को बेटा वो समझाने लगा है - डा दरवेश भारती
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लौट आओ जो कभी राम की सूरत तुम, तो मन का सुनसान अवध दीप-नगर हो जाए - डा दरवेश भारती - - - -
कैसे लौटायेंगे 'दरवेश' आप उसे
उम्र का दरिया था बहना, बह गया
- डा दरवेश भारती 
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अन्तर्मन से था किया, जिस पर दृढ़ विश्वास। खण्ड-खण्ड वह कर गया, जीवन की हर आस।। - डा दरवेश भारती
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वर्षों जीवन जी लिया, आज हुआ महसूस। काम न कोई बन सके, बिन परिचय, बिन घूस।। - डा दरवेश भारती
- - - - मिलने पर उनके दिखे, कुछ ऐसे अंदाज़। बाहर से तोता लगे, अन्दर से वह बाज़।। - डा दरवेश भारती
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आ जाएँ व्यवहार में, इन पर दो कुछ ध्यान। हर फ़ाइल के गर्भ में, भरे पड़े हैं प्लान।। - डा दरवेश भारती
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शीतल छाया है मरण, जीवन है अंगार। सुखी वही हैं जो करें, इस सच को स्वीकार।। - डा दरवेश भारती
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