ROOH-E-SHAYARI

सारी बस्ती में ये जादू नज़र आए मुझको,
जो दरीचा भी खुले तू नज़र आए मुझको;
जब तस्सवुर मेरा चुपके से तुझे छू आए,
देर तक अपने बदन से तेरी खुशबू आए;
- क़तील शिफ़ाई
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छुपे छुपे से रहते हैं सरेआम नहीं  होते,
कुछ रिश्ते सिर्फ़ एहसास हैं, उनके नाम नहीं होते
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सागर को घमंड था की मैं, सारी दुनिया को डुबा सकता हूँ।
इतने में तेल की एक बूद आयी, और तैर कर निकल गयी।
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कल किसी ने मुस्कुराते हुए मुझसे मेरी उम्र पूछी,
मैंने हंसते हुए कहा जितनी गुज़री लौटा दोगे क्या
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अगर नये रिश्ते न बने तो, मलाल मत करना  ;
पुराने टूट ना जायें,बस इतना ख्याल रखना ।
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कल का दिन, आज से बेहतर होगा ,
बस इसी भरोसे पर, जिन्दगी चल रही है ।
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बड़े मज़बूत कंधे हैं शरीफ़ों के यहाँ लेकिन,
शराफ़त का अलम नन्हा कबूतर ही उठाता है
- हरिओम
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वो मौज़ूद है साथ मेरे दुआ की तरह,  
बस छू नहीं सकते उसे हवा की तरह॰
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बेदाग़ रख, महफूज़ रख, मैली न कर तू ज़िन्दगी
मिलती नहीं इँसान को किरदार की चादर नईं.
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हर रोज चुपके से निकल आते हैं नये पत्ते,
यादों के दरख्तों में मैंने कभी पतझड़ नहीं देखा !
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मैं बताऊं तुझको तदबीर ऐ रिहाई मुझसे पूछ !
ले के रिश्वत फंस गया है दे के रिश्वत छूट जा !!
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