ROOH-E-SHAYARI
बचपन साथ रखियेगा जिंदगी
की शाम में
उम्र महसूस ही न होगी सफ़र
के मुकाम में !
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अब के इस बज़्म में कुछ अपना पता भी देना
पाँव पर पाँव जो रखना तो दबा भी देना
- ज़फ़र
इक़बाल
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मुद्दत से कोई आया न गया सुनसान पड़ी है घर की फ़ज़ा
इन खाली कमरों में नासिर, अब शमा
जलाऊं किसके लिए
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तिनका हूँ तो क्या हुआ वजूद है मेरा भी,
उड़ उड़ कर हवा का रुख बताता हूँ।
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बस साथ निभाने का हुनर साथ है वरना,
काँटे का किसी फूल से रिश्ता नहीं लगता।
- वसीम
बरेलवी
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बदल जाओ वक़्त के साथ, या फिर वक़्त बदलना सीखो
मजबूरियो को मत कोसो, हर हाल में चलना सीखो
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न मांझी,न रहबर,न हक़ में हवाएं ,
है कश्ती भी जर्जर ये कैसा सफ़र है ।
ख़ुलूसो-मुहब्बत की ख़ुशबू से तर है ,
चले आइये ये अदीबों का घर है ।
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दो रास्ते हैं जिन्दगी के, दोस्ती
और इश्क,
एक जाम से भरा, दूसरा इल्ज़ाम से भरा।
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वो हवा थी अपने मिज़ाज से चलती रही,
टूटे पत्तों सा मैं उसे दिखा ही नहीं ।
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बिना छूए ही स्पर्श कर लिया है मैंने तुम्हें,
यही तो हुनर है मेरे अल्फाज़ों में !
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