ROOH-E-SHAYARI

ज़रा सँभलूँ भी तो वो आँखों से पिला देता है

मेरा महबूब मुझे होश में रहने नहीं देता
- तौक़ीर अहमद
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कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है,
ये सलीक़ा हो, तो हर बात सुनी जाती है।
पूछना है तो ग़ज़ल वालों से पूछो जाकर,
कैसे हर बात सलीक़े से कही जाती है।
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उम्र भर सवारा है खुद को, बड़ी जद्दो जहद से
आइना जिंदगी का कहता रहा, कमी अब भी है तुझमें
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कभी संभले तो कभी बिखरते आये हम;
 जिंदगी के हर मोड़ पर खुद में सिमटते आये हम।।
 यूँ तो जमाना कभी खरीद नहीं सकता हमें;
 मगर प्यार के दो लफ्जो में सदा बिकते आये हम।।
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एक ये पीढ़ी है जो इकट्ठा करने के लिए जी रही है ,
एक वो पीढ़ी थी जो इकट्ठा रहने के लिए जीती थी।
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शबनम हूँ सुर्ख़ फूल पे बिखरा हुआ हूँ मैं
दिल मोम और धूप में बैठा हुआ हूँ मैं
- बशीरबद्र
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चुप यूं नही हूँ की लफ़्ज कम हैं,
चुप यूं हूँ की लिहाज़ बाकी है.
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मेरे चेहरे से मेरा दर्द न पढ पाओगे
मेरी आदत है हर बात पे मुस्कुरा देना
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एक मुख्तसर सी वज़ह है, मेरे झुक कर मिलने की
मिट्टी का बना हूँ, गुरूर जँचता नहीं मुझ पर
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जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है ।।
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क्यूँ नुमाइश करुँ. अपने माथे पर शिकन की,
मैं अक्सर मुस्कुरा के इन्हें मिटा दिया करती हूँ !
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वो और होंगे जिसे भाते होंगे सबके दिल
बुझे  चराग को आंधी का डर नही होता
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तेरी सादगी से जो भी मुतस्सिर हुआ,
या तो काफिर हुआ, या तो शायर हुआ
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धनक हो नूर या बारिश गगन से चाहते सब हैं ।
महकते फूल सतरंगी चमन से चाहते सब हैं।
भुला कर फ़र्ज़ को अपने लगाते हक़ के नारे जो।
वतन को कुछ नही देते वतन से चाहते सब हैं ।
- पंकज अंगार
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तेरे होटों में भी क्या ख़ूब नशा मिला !

यूँ लगता है तेरे जूठे पानी से शराब बनती है !!
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न जाने कितनी ही अनकही,बातें साथ ले जाते हैं लोग,

सब गलत कहते हैं कि,खाली हाथ चले जाते हैं लोग
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हम समंदर हैं हमें खामोश ही रहने दो

ज़रा  मचल  गये  तो सारा शहर ले डुबेगें
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हवा कभी तो ढूंढ़ ही लेगी खुशबू सदा उड़ाते रहना

लाख अंधेरा हो मत डरना दीपक एक जलाते रहना
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मज़हब बेशक़ से अनेक हैं,

पर इरादे, सबके ही नेक हैं,
माँ भारती है सबके दिलों में,
आज हर हिंदवासी एक है !
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सर्द आहों को गुनगुनाना आ गया..

दर्द को सीने में छुपाना आ गया..
कैसे रह लेते हो इतना खुश तुम..
तुम्हें भी झूठे किस्से बनाना आ गया..!!
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जरूरी नहीं की जिनमें साँसे नहीं वो ही मुर्दा है,

जिनमें इंसानियत नहीं है वो कौन से जिंदा है !!
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ना इश्क, ना मोहब्बत, ना दौलत की बात कर,

न नजाकत, न जियारत, न तिजारत की बात कर,
सूरते मुल्क बदलने को कई फैसले लेने हैं अभी
ऐ मेरे दोस्त जब भी कर मेरे भारत की बात कर।
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हाथों में पत्थर नहीं, फिर भी चोट देती है...

ये जुबान भी अजीब है,अच्छे-अच्छों के घर तोड देती है
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ना जियो धर्म के नाम पर,
ना मरो धर्म के नाम पर,
इंसानियत ही है धर्म वतन का
बस जियों वतन के नाम पर
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ
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आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी
- हकीम नासिर
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