ROOH-E-SHAYARI






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अपने खोए हुए लम्हात को पाया था कभी
मैं ने कुछ वक़्त तिरे साथ गुज़ारा था कभी
आप को मेरे तआरुफ़ की ज़रूरत क्या है
मैं वही हूँ कि जिसे आप ने चाहा था कभी
-  मज़हर इमाम
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टूट कर चाह मुझे या दिल तोड़ दे मेरा,
अधकचरे से रिश्ते सुहाते नहीं मुझको.
'सरजन'
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नर्म सोफे पे कहीं बैठा होगा,
आजकल सांप पिटारों में कहाँ मिलते हैं
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फासले इस कदर हैं आजकल रिश्तों में,
जैसे कोई घर खरीदा हो किश्तों में
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क्या लिखूं और  कितना लिखूं दिल के एहसासों को !
जिंदगी भरी पड़ी है सब अनकहें अल्फाज़ों से !!
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चिट्ठियाँ आती तो हैं उनकी अब भी लेकिन,
डाकिया कहता है उनपर पता अब तेरा नहीं होता
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