ROOH-E-SHAYARI


तुम्हारी याद की हम नौकरी बरसों से करते हैं !
कभी तो दीद की तनख्वाह हमको दीजिये साहब
- असद अजमेरी
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अपने अन्दर के बच्चे को हमेशा जिन्दा रखिए साहब

हद से ज़्यादा समझदारी, जिन्दगी को बेरंग कर देती है
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खता उनकी भी नहीं थी, वो भी क्या करते,

हजारों चाहने वाले थे, किस किस से वफा करते
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तुम्हें अपना कहने की तमन्ना थी दिल में

 लबों तक आते-आते तुम गैर हो गए !!
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रोज-रोज जलते हो, फिर भी खाक न हुए

 अजीब है कुछ ख्वाब भी, बुझ कर भी राख ना हुए
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कतरा कतरा मेरे हलक को तर करती है ,

मेरी रग रग में तेरी चाहत सफर करती है
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कपड़ों से तो पर्दा होता है

 हिफाजत तो नजरों से होती है
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लफ़्जों को बरतने का,सलीका ज़रूरी है गुफ़्तगू में,

गुलाब अगर कायदे से ना पेश हों, तो काँटे चुभ जाते हैं.
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रोज़ मुहब्बत करना मेरा पेशा है !

दोस्त यही मजबूरी है इक शाइर की !!
- क़ासिद देहलवी
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