Ghazal - झोंके सावन की पुरवाई की, बादलों से ये कहने लगे,- शरफ़ नानापारवी
इल्मो इरफ़ान का समुन्दर थे, मेरे साहब अदब का गौहर थे,
उनके दिल में था क़ायनात का ग़म, वो नए दौर के कलंदर थे !
- शरफ़ नानापारवी
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झोंके सावन की पुरवाई की, बादलों से ये कहने लगे,
ख़्वाब बन कर मोहब्बत का हम, तेरी आँखों में रहने लगे !
चाँद की चौदहवीं रात में, उससे बिछड़े थे हँसते हुए,
घर में जब लौट कर आये हम, अश्क़ आँखों से बहने लगे !
जिसने ज़ख्मों की सौगात दी, हम उसी अजनबी के लिए,
जो मुक़द्दर लिक्खे गए, उन आज़ाबों को सहने लगे !
बस गए उनकी आँखों में हम, सीप के मोतियों की तरह,
मीर की शायरी की तरह, उसके होटों पे रहने लगे !
एक मासूम की चीख़ ने, मेरे होटों को भी सी दिया,
जिनकी आवाज़ की धूम थी, वो भी ख़ामोश रहने लगे !
सोने चांदी से बढ़ कर लगा, उसको मेरी मोहब्बत का ग़म,
मेरी पलकों के आंसू से, हीरे मोती के गहने लगे !
- शरफ़ नानापारवी
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