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Showing posts from February, 2020

shayari

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शीशा और पत्थर संग संग रहे तो बात नही घबराने की ! शर्त इतनी है कि बस दोनों ज़िद ना करे टकराने की !!

SHAYARI

रिश्ता होने से रिश्ता नहीं बनता , रिश्ता निभाने से रिश्ता बनता है। - - - - कभी खुद की ही लग जाती है नजर हमसफर हसीन होना भी गुनाह है - - - - दिल ही नही महफूज तो दिल में कौन महफूज होगा. - - - -  ना जाने उसने हमसे ये कैसा राबता रखा.. ना वो करीब आए , ना फासला रखा !! - - - - ' मेरा पानी उतरता देखकर , किनारे पर घर मत बना लेना। मैं समंदर हूं , लौटकर जरूर आऊंगा ' ।। - - - - तुम्हारे मोहल्ले की मिट्टी लगी है पैरों में .. हमारे मोहल्ले के रास्ते खुशी से पागल हैं !! - - - - हर सांस सुंदर है ! जबसे तू दिल के अंदर है  - - - - ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम - - - - गजब है मेरे दिल मे तेरा वजूद मैं खुद से दूर और तु मुझमें मौजूद - - - - क़ुदरत ने हम सबको हीरा ही बनाया है । बस शर्त ये जो घिसेगा वही चमकेगा ।। - - - - ना जाने कितने रिश्ते ख़त्म कर दिये इस भ्रम ने कि मैं ही सही हूँ और सिर्फ़ मैं ही सही हूँ - - - - ढक कर चलता हूँ जख्मों को अपने आज कल नमकीन

SHAYARI

जहाँ उनका दीदार हुआ सुकून वहीं से शुरू हुआ है - - - - दिमाग से बनाये हुए रिश्ते बाजार तक चलते है ! और दिल से बनाये रिश्ते आखरी सांस तक चलते है !! - - - - मुमकिन नहीं है हर रोज मोहब्बत के नए किस्से लिखना , मेरे दोस्तों अब मेरे बिना अपनी महफ़िल सजाना सीख लो ।। - - - - ले ये खंज़र फिर सजा ले , अपने म्यान में बदस्तूर , दुश्मन बहुतेरे मिलेंगे जंग में तुझे , पर दोस्त जैसा सीना नहीं। - - - - बुरी नज़र से ना देख मुझको देखने-वाले , मैं लाख बुरा सही तू अपनी नज़र तो खराब ना कर। - - - - बरसों में एहसास हुआ है हमको अपनी ग़लती का ! ख़ुशबू की उम्मीद थी हमको कुछ काग़ज़ के फूलों से !! ~असद अजमेरी - - - -

SHAYARI

चेहरा, लिबास और न गुफ़्तार देखकर। दोस्त बनाता हूँ मैं क़िरदार देखकर ।। - - - - तारीखों में धीरे धीरे व्यतीत हो रहे  है, हमारे हर पल अतीत हो रहे है... - - - - "रात भर करवट बदलती रहीं सिलवटें, मुक़म्मल न नींद हुई न ख़्वाब - - - - हक़ीकत की भीड़ से कुछ गुमशुदा सपने ढूँढ रहे हैं !! आज कल हम अपनो में कुछ अपने ढूँढ रहे हैं !! - - - - खुद कफ़स बन गए थे हम दुनिया से छुपाने को उन्हें। जब उनकी तड़प को देखा , तो खुद को नोच डाला।। - - - - तेरा अपना दिखाई दूर तक देता नहीं कोई !  असद तू रोयेगा तो तेरे आंसू कौन पौछेगा !! ~असद अजमेरी - - - - न जाने कितनी कही अनकही बातें साथ ले जाएंगे लोग झूठ कहते हैं कि खाली हाथ आये थे,खाली हाथ जाएंगे - - - - नजाकत ले के आँखों में , वो उनका देखना तौबा , . या खुदा ! हम उन्हें देखें , की उनका देखना देखें । - - - - झुकना ज़रूर लेक़िन , सिर्फ़ उनके सामने ~  जिनके दिल में आपको , झुकता देखने की ज़िद ना हो. - - - - एक परवाह ही बताती है कि ख़याल कितना है , वरना कोई तराज़ू नहीं होता रिश्तों में  !

Mushaira - Geet - Maine Ve Din Bhi Dekhe Hain मैंने वे दिन भी देखें हैं ...

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चाहत है मेरे मन की , आँखों मे तुम सदा रहो कभी घटा बन कर छाओ तो , पुरवाई सा कभी बहो नहीं जलेंगे पाँव रेत मे , धूप तराने गाएगी गर तुम सांस सांस मे महको , कस्तूरी की व्यथा कहो गीतकार - लोकेश शुक्ला   https://youtu.be/uKxeEEpB0R8

SHAYARI

ओढ़ कर पल्लू वो निकले है घर से , पहली बार देखा है मैने धूप में चांद को जलते हुए । - - - - मन बैरागी , तन अनुरागी , क़दम-क़दम दुश्वारी है जीवन जीना सहल न जानो , बहुत बड़ी फ़नकारी है औरों जैसे होकर भी हम बाइज़्ज़त हैं बस्ती में कुछ लोगों का सीधापन है , कुछ अपनी अय्यारी है - - - - तेरे ईमान की तारीफ़ तो बनती है कि तूने सभी बेइमानियाँ कर दीं बड़ी ईमानदारी से - - - - नजरें झुका लेने से भला सादगी का क्या ताल्लुक , शराफत तब झलकती है , जब "नियत" बेपर्दा हो - - - - बहुतों के क़रीब जा कर ये जाना है हम पर अकेलापन ही जचता है - - - - मेरी सभी ख्वाइश  मुकम्मल  हो जाएंगी। अब फ़क़त अपना दीदार दे कर तो देखो। अवनीश त्रिवेदी"अभय - - - -

SHAYARI

हवाएँ अगर मौसम का रुख बदल सकती हैं ! तो दुआएँ मुसीबत के हर पल बदल  सकती हैं ! - - - - गिरते हैं सह सवार ही मैदान-ए-जंग में ! वो तिफ्ल क्या गिरेंगे जो घुटनो के बल चले!! - - - - मुफ़्त में नहीं सीखा उदासी में भी मुस्कराने का हुनर बदले में ज़िन्दगी की हर ख़ुशी तबाह की है हमने - - - - हक़ीकत की भीड़ से कुछ गुमशुदा सपने ढूँढ रहे हैं ! आज कल हम अपनो में कुछ अपने ढूँढ रहे हैं !! - - - - बार बार रफू करता रहता हूँ , जिन्दगी की जेब !! कम्बखत फिर भी , निकल जाते हैं खुशियों के कुछ लम्हें !! - - - - उन लोगों से बहस करना बेकार है , जो अपने ही झूठ में विश्वास करते है। - - - - - एक के पास नमक है दुसरे के पास मरहम है तलाश दोनो को घाव की है - - - - आईने का किरदार कौन सा साफ़ होता है, सामने जो भी आ जाये उसी के साथ होता है - - - - लफ़्ज़ों की दहलीज़ पर घायल ज़ुबान है कोई तन्हाई से कोई महफ़िल से परेशान है. - - - - छोड़ा नहीं है किसी को यलगारे वक्त ने खजूर को भी छूआरा बनाके दम लिया - - - - तुमसा कोई नज़र नहीं आता ! दर ब