SHAYARI
साक़ी कुछ आज तुझ को ख़बर है बसंत की
हर सू बहार पेश-ए-नज़र है बसंत की
सरसों के लहलहाते हैं खेत इस बहार में
नर्गिस के फूल फूल उठे लाला-ज़ार में
आवाज़ है पपीहों की मस्ती भरी हुई
तूती के बोल सुन के तबीअ'त हरी हुई
कोयल के जोड़े करते हैं चुहलें सुरूर से
आते हैं तान उड़ाते हुए दूर दूर से
बौर आम के हैं यूँ चमन-ए-काएनात में
मोती के जैसे गुच्छे हों ज़र-कार पात में
भेरों की गूँज मस्त है हर किश्त-ज़ार में
बंसी बजाते किश्न है गोया बहार में
केसर कुसुम की ख़ूब दिल-अफ़ज़ा बहार है
गेंदों की हर चमन में दो-रूया क़तार है
जाने वो
कैसे मुकद्दर
की किताब लिख देता
है ,
साँसे
गिनती की और ख्वाइशे बेहिसाब लिख देता है
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लब पे
आयी हुई बातों को समझने वालो
ख़ामोशी
भी कभी एक तर्ज ए बयां रखती है
.वसीम बरेलवी
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अमन के फूल खिलाने की जरुरत है !
प्रेम सुधा रस बरसाने की जरूरत है !!
दहक न पाये वतन में नफरती शोले !
शम्मए मुहब्बत जलाने की जरूरत है !!
~सरफ़राज़ भारतीय
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