SHAYARI


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कितना खूबसूरत है उसका मेरा रिश्ता !
न उसने कभी बांधा, न हमने कभी छोड़ा !!
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सुकून मिल गया है मुझको बदनाम होकर,
आपके हर एक इल्ज़ाम पे यूँ बेजुबान होकर,
लोग पड़ ही लेंगे आपकी आँखों में मोहब्बत,
चाहे कर दो इनकार यूँ ही अनजान हो कर।
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एक रात वो गई थी जहाँ बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूं वहीं रात रोक के
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क्यूँ नुमाइश करुँ अपने माथे पर शिकन की
मैं अक्सर मुस्कुरा के इन्हें मिटा दिया करती हूँ
मैं भी हुआ करता था  वकील इश्क वालों का कभी
नज़रें उस से क्या मिलीं  आज खुद कटघरे में हूँ
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वो बेइंतहा हसीन हैं न यकीं हो
हमारी निगाह का आइना बन कर देख लिजिये
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दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
- #फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं
- मजाज़ लखनवी
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इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊं
वगरना यूं तो किसी की नहीं सुनी मैंने
- जौन एलिया
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वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
- साहिर लुधियानवी
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शब-ए-विसाल है गुल कर दो इन चराग़ों को
ख़ुशी की बज़्म में क्या काम जलने वालों का
- दाग़ देहलवी
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अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
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अब तो जाते हैं बुत-कदे से 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
- मीर तक़ी मीर
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रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
- मिर्ज़ा ग़ालिब
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जियो  ऐसे  के  अपने आपको पसंद आ जाओ !
दुनिया  वालो  की पसंद तो पल भर में बदल जाती है !!
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आज अजब सा मैंने ये मंजर देखा !
बड़ी दूर बड़ी दूर तलक समंदर देखा !!
ढूँढा करते थे जिसको मंदिर मस्जिद में !
उस खुदा को अपने दिल के अंदर देखा !!
~राकेश नमित
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वहां से पानी कि एक बूँद भी न निकली
तमाम उम्र जिन आँखों को झील लिखते रहे हम
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मैं चलता गया, रास्ते मिलते गये,
राह के काँटे फूल बनकर खिलते गये;
ये जादू नहीं, आशीर्वाद है मेरे अपनों का,
वरना उसी राह पर लाखों फिसलते गये !
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हल्के हल्के बढ़ रही हैं चेहरे की लकीरें,
नादानी औऱ तजुर्बे में बँटवारा हो रहा है
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होश का पानी छिड़को मदहोशी की आँखों पर,
अपनों से कभी ना उलझो गैरों की बातों पर ।
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तूफान-ए-इश्क़ ने कहा तेरी कश्ती बीच में डूबेगी
हमने भी कह दिया कमबख़्त पार किसको होना है
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उठने लगे हैं अब तो इस बात पे सवाल !
वो मेरी तरफ मुस्कुरा के देखते क्यों हैं !!
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यही सबसे बड़ी गलती तो है उस नेक नीयत की। 
वो करता है तवक्को आदमी से आदमीयत की।। 
(नेक नीयत - अच्छे विचारों वाला, तवक्को - उम्मीद, 
  आदमीयत - इंसानियत) 

कि खंजर पीठ में न भोंक कर सीने में ही भोंका। 
मिरे दुशमन ने मेरे साथ इतनी तो ग़नीमत की।। 
(ग़नीमत - संतोषजनक बात) 

मिरे हमदर्द थे तो हक़-ब-जानिब बात तो करते। 
जब उसने आपके ही रू ब रू मेरी मज़म्मत की।।
(हक़-ब-जानिब - न्यायपूर्ण, मज़म्मत - निंदा) 
Waseem Barelvi.

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