Mushaira - बदलती है नज़रों को नज़र इंसान कामिल की - Badalti Hai Nazron Ko ...
BASHEER FAROOQI - BADALTI
HAI NAZRON KO NAZAR
HAI NAZRON KO NAZAR
बदलती है नज़रों को नज़र इंसान कामिल की !
उधर देखो निगाहें हैं जिधर इंसान कामिल की !!
सितारे चाँद सूरज इनसे भी आगे है एक दुनिया !
वो दुनिया भी है मंज़ूरे नज़र इंसान कामिल की !!
हमारे पीर परम पूज्यनीय हज़रत मंज़ूर आलम शाह "कलंदर
मौजशाही" अपने जीवन काल में प्रत्येक चार माह में प्रतिष्ठान करते थे जिसमे
एक दिन सूफ़ी क़व्वाली होती थी और दूसरे दिन शेरे नशिस्त का आयोजन होता था | दिनांक ४ अप्रैल २०१४ को
ख़ानक़ाह में चौमासी शेरे नशिस्त का आयोजन किया गया था और ये मेरा सौभाग्य था कि
साउंड एवं रिकॉर्डिंग की व्यवस्था मेरे हुज़ूर साहब ने हमें सौंप रखी थी | उस नशिस्त में सुप्रसिद्ध
शायर जनाब बशीर फ़ारूक़ी ने अपना कलाम पेश किया था उसकी रिकॉर्डिंग पेशे ख़िदमत है | नशिस्त की निज़ामत इलाहाबाद
के जाने माने शायर श्री बुद्धसेन शर्मा जी ने की |
मौजशाही" अपने जीवन काल में प्रत्येक चार माह में प्रतिष्ठान करते थे जिसमे
एक दिन सूफ़ी क़व्वाली होती थी और दूसरे दिन शेरे नशिस्त का आयोजन होता था | दिनांक ४ अप्रैल २०१४ को
ख़ानक़ाह में चौमासी शेरे नशिस्त का आयोजन किया गया था और ये मेरा सौभाग्य था कि
साउंड एवं रिकॉर्डिंग की व्यवस्था मेरे हुज़ूर साहब ने हमें सौंप रखी थी | उस नशिस्त में सुप्रसिद्ध
शायर जनाब बशीर फ़ारूक़ी ने अपना कलाम पेश किया था उसकी रिकॉर्डिंग पेशे ख़िदमत है | नशिस्त की निज़ामत इलाहाबाद
के जाने माने शायर श्री बुद्धसेन शर्मा जी ने की |
आपका
प्रदीप श्रीवास्तव
+91 9984555545
pradeep.ghazal@gmail.com
https://youtu.be/8DGFCi-XgbI
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