श्याम ने बंसुरिया पे ऐसा राग छेड़ा है,
श्याम ने बंसुरिया पे ऐसा राग छेड़ा है,
होश अब नहीं आता बेख़ुदी ने घेरा है।
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आपके अलावा कुछ अब नज़र नहीं आता,
कुछ नहीं रहा मेरा हाल अब ये मेरा है।
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फिर नहीं बढ़ा आगे देख कर उन्हें शायद,
आज तक वहीँ दिल का शाम और सवेरा है।
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मैं हूँ उनका सौदाई मेरे दिल की दुनिया में,
यार की मोहब्बत है यार का बसेरा है।
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रंग कोई दुनिया का दिल को अब नहीं भाता,
उसने अपनी उल्फ़त का ऐसा रंग फेरा है।
~ हज़रत मंज़ूर आलम शाह ' कलंदर मौजशाही'
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