ROOH-E-SHAYARI, 08.10.2020


 

जिन्हें फ़िक़र थी कल की वे रोए रात भर

 जिन्हें यकीन था रब पर वे सोए रात भर.

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भीग जाती हैं जो पलकें कभी तन्हाई मे,

कांप उठता हूँ मेरा दर्द कोई जान न ले

ये भी डरता हूं कि ऐसे मे अचानक कोई,

मेरी आँखों मे तुझे देख के पहचान न ले

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एक दरवेश मेरे जिस्म को छू कर बोला,

अजीब लाश है, सांस भी लेती है

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उसकी जीत से होती है ख़ुशी मुझ को,

यही जवाब मेरे पास अपनी हार का था.

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जो कह दिया तो  मलाल कैसा,

 जब कह दिया तो सवाल कैसा !

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सबको ओढनी है मिट्टी की चादर एक दिन,

ऐसा कोई दिया नहीं जिस पर हवा की नजर नहीं

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अपनी ताकत पर लोग इतना "क्यों" इतराते है,

दरवाजे उनके भी टूटते है जो "ताले" बनाते है ।

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आँसू गर आये तो, फिर ख़ुद ही पोछिए,

गैर गर आयेंगे तो, सौदा ही करेंगे।

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जुबां देता है जो ए दर्द तेरी बेज़ुबानी को

उसी आंसू को फिर आँखों से बाहर होना पड़ता है

- वसीम बरेलवी

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अब  नहीं कोई  बात  ख़तरे की !

अब सभी को सभी से ख़तरा है !!

-जॉन एलिया

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जुबां तो खोल, नज़र तो मिला, जवाब तो दे !

मै तुझपे कितनी बार लुटा हूँ मुझे हिसाब तो दे !!

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बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

~ फ़िराक़ गोरखपुरी

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एक तरफ़ा ही सही प्यार तो प्यार ही है,

उसे हो ना हो हमे तो बेशुमार है

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यही जुनून यही एक ख्वाब मेरा है

वहां चराग जला दूं जहां अंधेरा है।

तेरी रज़ा भी तो शामिल थी मेरे बुझने में

मैं जल उठा हूं तो ये भी कमाल तेरा है।

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