ROOH-E-SHAYARI

बहुत अजीब से हो गये हैं ये रिश्ते आजकल।
सब फुरसत में हैं पर वक्त किसी के भी पास नहीं है ।
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रौनकें कहां दिखाई देती हैं

अब पहले जैसी
अखबारों के इश्तेहार बताते हैं
कि कोई त्यौहार आया है
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आपको क्या पता की मेरे दिल में कितनी इज्जत है आपके लिए

जो कर दूं बया, तो शायद आपको नींद से नफरत हो जाए
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किसी ने पूछा,खुदा कहां है, मैंने कहा कानपुर आ जा

यहां हर रास्ता खुदा है, हर तरफ हर मोड़ खुदा है
जहां नही खुदा है, वहां जल्दी ही खुद जाएगा
एक चक्कर लगा लो शहर का, हर तरफ खुदा ही खुदा नजर आयेगा
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अंधे निकालते हैं नुख्स मेरे क़िरदारमें और,

 बहरों को ये शिकायत है कि  गलत बोलता हूं मैं !
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अकेले हम ही शामिल नहीं हैं इस जुर्म में जनाब,

नजरें जब भी मिली थी मुस्कराये तुम भी थे
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मैं अन्तस् की प्यास बनूं तुम खुद को बादल कर डालो।

मैं अमलतास में ढलता हूँ तुम खुद को सन्दल कर डालो।
ये रात मिलन की गुज़र न जाये कहीं अधूरेपन में ही।
मैं तुम्हे मुकम्मल कर डालूं,तुम मुझे मुकम्मल कर डालो।।
पंकज अंगार
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करना है तो करो नमस्ते, शेक हैंड मत "करोना"

खाना में शाकाहार करो ,मांसाहार मत " करोना"
रोज करो तुलसी का सेवन ,धूम्रपान मत " करोना"
नीम गिलोय का घूंट भरो मदिरा पान मत " करोना*
देशी भोजन रोज करो फ़ास्ट फ़ूड मत " करोना"
हाथ साफ दस बार करो कहीं गंदगी मत " करोना*
अग्नि संस्कार करो शव का लाश दफन मत " करोना
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बन्द करो करोना  का रोना

बनो सनातन कुछ ना होना
तन- मन- जीवन हिन्दू हो तो
सदा स्वस्थ कोई रोग ना होना
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कुछ रिश्ते बहुत रूहानी होते हैं

अपनेपन का शोर नहीं मचाया करते
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छुप के तेरी तस्वीरें देखता हूँ बेशक तू ख़ूबसूरत आज भी है,

पर चेहरे पर वो मुस्कान नहीं जो मैं लाया करता था।
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कुछ हार गई तकदीर कुछ टूट गये सपने,

कुछ गैरों ने किया बरबाद कुछ भूल गये अपने।
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तुम्हे कोई और भी चाहे, इस बात से दिल जलता है
पर फक़र है मुझे इस बात पे कि, हर कोई मेरी पसंद पे ही मरता है
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जब नफरत करते करते थक जाओ,

तब एक मौका प्यार को भी देना।- 
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कितना अजीब है लोगों का अंदाज़-ए-मोहब्बत,

रोज़ एक नया ज़ख्म देकर कहते हैं अपना ख्याल रखना।
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ऐ खुदा लोग बनाने थे पत्थर के अगर तो,

मेरे एहसास को शीशे सा न बनाया होता।
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तुम तो डर गये हमारी एक ही कसम से,

हमे तो तुम्हारी कसम देकर हजारो ने लूटा है।
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सोचता रहा ये रातभर करवट बदल बदल कर,

जानें वो क्यों बदल गया मुझको इतना बदल कर।
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चाहा था मुक्कमल हो मेरे गम की कहानी,
मैं लिख ना सका कुछ भी तेरे नाम से आगे
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अदाएं तो देखिए शरारती चायपत्ती की

थोड़ी दूध से वख़्फ़ियत क्या हुई, शर्म से रंग ही बदल डाला !!!
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फ़िज़ा में घुल रही है महक अदरक की

आज सर्दी को भी चाय की तलब है लगी
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न उसने पूछ कर छोड़ा न मैंने छोड़ते सोचा

उसे आदत गवांने की, मुझे भी शौक खोने का
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सर्द रात बढ़ा देती है , सूखे पत्तों की कीमत ;

वक्त-वक्त की बात है, समय सबका आता है।
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बनावट, दिखावट और सजावट ;
इन्ही कारणों से है सारी गिरावट।
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